संक्षिप्त परिचय: जब एक स्त्री अपने जीवनसाथी को देखती है तो उसके मन में ज़रूर कुछ सवाल उठते होंगे, जिन्हें वो कभी पूछ पाती होगी कभी नहीं। उन्हीं प्रश्नों को अपनी कविता में ख़ूबसूरती से उकेरा है आरती वत्स ने।
तुम मुझे मेरे हिस्से का प्यार दे पाओगे क्या?
ताउम्र मेरा साथ निभा पाओगे क्या?
अगर मैं तुमसे कभी रूठ जाऊँ
तो मुझे मना पाओगे क्या?
ज़िंदगी से अगर हार जाऊँ कभी
तो मेरी हिम्मत बन पाओगे क्या?
मेरी अम्मी के बेटे और
मेरे हमदर्द बन पाओगे क्या?
अगर किसी राह पर
मैं भटक जाऊँ
तो मुझे मेरी मंजिल दिखा पाओगे क्या?
जिंदगी में सपनों के टूटने पर
अगर टूट जाऊँ
तो मुझे समेट पाओगे क्या?
मेरे टूटे दिल का
पूरा हिस्सा बन पाओगे क्या?
मेरे लबों की तबस्सुम और
सुर्ख़ की रूख्सार बन पाओगे क्या?
मुझे मेरे हिस्से का सम्मान
दे पाओगे क्या?
तुम मेरा गुरुर बन पाओगे क्या?
मेरी नादानियों को मेरे वालिद की तरह
माफ कर पाओगे क्या?
अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा
मुझे बना पाओगे क्या?
तुम मेरी परवाज़ बन पाओगे क्या?
तुम मेरी खूबसूरत कल्पना की
हकीकत बन पाओगे क्या?
तुम मुझे मेरे हिस्से का प्यार दे पाओगे क्या?
ताउम्र मेरा साथ निभा पाओगे क्या?
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कविता की लेखिका आरती वत्स के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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PC: Kyle Broad
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