संक्षिप्त परिचय : जितना जीवन निकलता जाता है, उतनी ही बनती जाती हैं यादें। उन्हीं यादों के कारवां से आज फिर गुज़रने के लिए पढ़िए उषा रानी जी की यह भावनाओं से भरी कविता ‘मेरी मजबूर सी यादें’।
समय के साथ बदलती दुनिया,
क्या- क्या रंग दिखाती हैं,
और जोड़ती जाती हैं
बीते दिनों की खट्टी- मीठी यादें ।
समय के सफर में
जाने कितनों से मिलाती और
बिछुड़ाती है जिंदगी में ।
मिलने की खुशी हो या
बिछुड़ने का दर्द,
मजबूर-सी दिल के कोने में
छुपी रहती मौन- सी !
जब-तब याद आती
मजबूर- सी यादें ।
माँ की ममता का दुलारता स्पर्श
दूर जाने पर बहुत याद आता ।
पिता की डांट- फटकार का मतलब दूर जाने पर समझ आता
सही- गलत की पहचान कराता ।
विद्यालय में प्रथम दिन से
आखिर दिन तक की कितनी यादें
जीवन भर गुदगुदाती और
अच्छे दिनों के बीत जाने की कसक मजबूर- सी यादें !
जिंदगी में बार-बार उमड़ती ।
प्रथम प्रेम की फुहारें भिगोती और
सुसराल में पहली रात का डर,
भाई- बहिनों से बिछड़ने का दु:ख
कितना रुलाती मजबूर-सी यादें ।
पति- पत्नी के रिश्तों में जुड़ी
खट्टी- मीठी मजबूर करती यादें ।
माँ बनने से लेकर बच्चों की
परवरिश करने तक की
जाने कितनी रातों के
रतजगे की मजबूर- सी यादें ।
बच्चों के काबिल बनते ही
दूर परदेश जाकर बस जाने की
कहानियाँ बनने की मजबूर- सी यादें!
जीवन संध्या को कभी महकाती,
कभी रुलाती है मजबूर- सी यादें ।
स्वरचित कविता
उषा माहेश्वरी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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Photo by Anita Jankovic
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