संक्षिप्त परिचय – जीवन में सुख भी आता है और दुःख भी। कभी कभी एक ही सिक्के के दो पहलू भी हो जाते हैं ये सुख और दुःख। कुछ ऐसी ही बात बताती है उषा रानी जी द्वारा लिखी गयी यह हिंदी कथा ‘धुंधली साँझ’।
शंभूनाथ मिडिल कक्षाओं को चालीस साल पढ़ाने के बाद रिटायर्ड हुए! वो अपने परिवार के लोगों के साथ शानदार जश्न मना कर, अपने ठिकाने लौट गये! घर में पत्नी के साथ सुकून से रहने लगे। जिंदगी के अनेक रंगों में एक रंग उपलब्धियों का रंग भी होता है।
उनके दोनों बेटे विदेशों में अच्छी पैकेज वाली नौकरी में व्यस्त थे। सपरिवार वहीं सेट हो गये! यहाँ उनका पुस्तैनी मकान कब का नये रंग- रूप में बदल चुका था! कोई कमी नहीं थी। देखने वालों की नजर में प्रशंसा के साथ ईर्ष्या थी। एक सामान्य शिक्षक के ठाठ- बांट देखते तो कहे बिना नहीं रहते। “किस्मत हो शंभूनाथ जैसी। “
लेकिन कहते है ना -“सुख ज्यादा दिन एक जगह नहीं रूकता। और दु:ख जल्दी नहीं मिटता ! और ना ही भूलता। ” समय अपनी गति से ही चलता है लेकिन सुख में पंख लगाये उड़ता है और दु:ख में रेंगता हुआ। शंभूनाथ के बेटे धीरे- धीरे आने बंद हो गये। कारण बहुत से थे। नौकरी की व्यस्तताएं और बच्चों की पढ़ाई। अब ज्यादातर मोबाइल का ही सहारा रहा।
आंखों से देखने की इच्छा मन में सांप की तरह कुंडली मारे बैठी तड़पाने लगी। इसी ग़म में बीमार पड़ गये। फिर भी कोई बेटा तीमारदारी के लिए नहीं आ सका। समय बहता रहा, धुंध लाता रहा! गोधूलि बेला कब रात में बदल गयी! इसका अहसास ही जाता रहा। जिंदगी की उपल्बिधियां धुंधली सांझ में सिमट कर रात के अंधेरे में खो गयी। वे नम आँखों से घर की सूनी चौखट की प्रतीक्षा में ठहर से गये।
स्वरचित लघुकथा
उषा माहेश्वरीपुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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Photo by Julian Hochgesang
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