संक्षिप्त परिचय: औरत होना आसान नहीं है। प्रकृति ने भी तो उसे कितनी ज़िम्मेदारियाँ दी हैं निभाने को। ऐसी ही औरत की खूबियों पर प्रकाश डालती है यह कविता ।
औरत तुम किस मिट्टी की बनी हो !
सारी बंदिशें झेलकर,
सारी ज़िल्लतें सह कर भी
जिंदा रहती हो ।
सहनशील होने की
कोई लिमिट है क्या❓
रोने की चाहत में भी
हंस लेती हो
जाने किस मिट्टी की बनी हो !
औरत बनकर जन्मी हो
पहले बेटी बनी
फिर बहू बनी और
माँ बनकर पीड़ा सह कर भी मुसकरा
अपने हर किरदार में तुम
अपने कर्तव्य निभाते निभाते
समय की पटरी पर
कब फिसल गई तुम
गुजर गयी जिंदगी मुसाफिर की तरह
तुम्हें पता ही नहीं चला
तुम मिट्टी की मूरत सी
सजती संवरती रही
सारे गिले शिकवे
मन में छुपाएँ रही
विरोध को भी तुमने
हंसकर सह लिया लेकिन
अपने सपनों को भी
तुमने आकाश की सैर कराई
दुनिया में उपेक्षित हो कर भी
तुमने सफलता की मंजिल पाई
आखिर तुम किस मिट्टी की बनी हो
इतना धैर्य और सहनशक्ति
कहाँ से पाती हो
हर किरदार में समाई तुम
जीवन के रंगमंच पर
जिंदादिली की मिसाल बन
हर पल मुसकराई तुम
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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