संक्षिप्त परिचय: अनिल कुमार मारवाल की यह हिन्दी की कविता भारतीय समाज को जकड़े हुए कई मुद्दों पर प्रकाश डालती है।
हाँ मैं पागल हूँ, हर काम को बिगाड़ देता हूँ।
आजकल के प्यार को मैं हवस की औलाद कहता हूँ।
मां बाप के सपने को तोड़ने वाले हर शख्स को मैं
शैतान कहता हूँ।
आजकल के नेताओं के भाषणों को मैं इन्सान
के लिए सरेआम खतरनाक कहता हूँ।
हाँ मैं पागल हूँ , हर काम को बिगाड़………..।
नारी पर होते रहे जुल्म और एक बेटा सरेआम देख रहा है, मैं उसे हर माँ का अपमान कहता हूँ – 2।
मर रहा है किसान और सरकार अपनी जेबें भरने में लगी है। इसीलिए मैं उस सरकार
के हर आदेश को तानाशाही फरमान कहता हूँ।
हाँ मैं पागल हूँ, हर काम को बिगाड़…………।
आज कल के युवा सिर्फ भगतसिंह का नाम लेकर चमकना चाहते हैं
विचार भगत सिंह के होते नहीं हैं उनके पास , मैं उनके इस कार्य को क्रांतिकारियों का अपमान कहता हूँ।
प्रताप को जिसने कभी पढ़ा ही नहीं ,
वो लोग अकबर को महान बतलाते हैं।
ऐसे लोगो को सरेआम बुलन्द आवाज के साथ
मैं भारत माँ के लिए नुकसान कहता हूँ।
हाँ मैं पागल हूँ , हर काम को बिगाड़………….।
अब मानव को बचाने के लिए मानव को आगे
आना होगा।
कहीं पर बुद्ध तो कहीं पर , माँ भारती के वीरों
को आगे आना होगा।
हर नारी को रणचंडी बनकर वहशी दरिंदों से भारत
माँ को बचाना होगा।
हाँ मैं पागल हूँ हर काम को बिगाड़……………।
कहीं पर जिहादी सोच तो कहीं, इस बॉलीवुड की गन्दी सोच से देश के भविष्य को बचाना होगा।
अब ले हाथों में तलवार सरेआम युद्ध का बिगुल बजाना होगा।
हाँ मैं पागल हूँ हर काम को बिगाड़ देता हूँ……2।
अब तो हर नारी को दुर्गा, रानी लक्ष्मी बाई कहीं पर फूलन बनना होगा।
इन दुराचारियों के शीशों को हवन कुण्ड में भस्म करना होगा।
कैसी लगी आपको यह हिन्दी की कविता? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
इस कविता के लेखक अनिल कुमार मारवाल के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए कुछ और हिन्दी की कविताएँ:
- अंधेरे से उजाले की ओर: कवयित्री सुंदरी अहिरवार की ये एक उत्साह बढ़ाने वाली कविता है। इस कविता के माध्यम से वे पाठक को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं।
- कोहिनूर: बचपन हमारे सम्पूर्ण जीवन का आधार बनता है। बचपन की कई सारी बातें हम अपने साथ हमेशा रखते हैं। और ऐसे ही होते हैं बचपन के दोस्त। बस कुछ ऐसा ही कह रहे हैं उम्मेद सिंह सोलंकी “आदित्य” अपनी हिंदी कविता “कोहिनूर” में ।
- अब तो कुछ करना होगा: यह कविता ‘अब तो कुछ करना होगा’ नारी पर हो रहे अत्याचारों पर आवाज़ उठाती हुई, नारी को सशक्तिकरण की माँग करती हुई कविता है। पढ़िए कवि जुबैर खाँन द्वारा लिखी गयी यह कविता।
अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/
*storiesdilse.in does not endorse the thoughts presented in the content in the website.
PC: Khusen Rustamov
1,455 total views