संक्षिप्त परिचय: अंशिका जैसवाल की यह कविता उनके सतगुरु के लिए है। इस कविता से वह कह रही हैं की वह किसी भी परिस्थिति में घबराएँगी नहीं क्यूँकि उनके सतगुरु हमेशा उनकी रक्षा करेंगे।
आखिर मैं क्यों घबराऊं?
जब मेरा पिता तू है
जब जब अंधकार आया, तब तब तूने उजाला लाया
आखिर मैं क्यों घबराऊं?
जब मेरी मशाल तू है।
जब-जब पथ से भटकी, तब तब तूने राह दिखाई
आखिर मैं क्यों घबराऊ?
जब मेरा मार्गदर्शक तू है।
जब लगा डगर कठिन है, आगे काँटे ही काँटे हैं,
तब तूने मेरे लिए उन काँटों को भी फूल बनाए,
आखिर मैं क्यों घबराऊं?
जब इस बगिया का माली तू है।
जब काल का तूफ़ां आया, तब लगा कि अब किश्ती डूबेगी,
तब तूने उस तूफान को ही इस किश्ती का साहिल बनाया,
आखिर मैं क्यों घबराऊं?
जब मेरा खेवनहार तू है,
अब तो समस्याओं ने भी मानो घुटने टेक दिए हैं
शायद यह समस्याएं भी जान चुकी है कि मेरे सतगुरु स्वामी दिव्यानंद है।
आखिर मैं क्यों घबराऊं?
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कविता की लेखिका अंशिका जैसवाल के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े ।
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Photo by Mariam Soliman
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