एक और ‘निर्भया’ | नारी अत्याचार पर कविता

अक्षय कंडवाल की कविता

एक और 'निर्भया' | अक्षय कंडवाल की कविता नारी अत्याचार पर कविता

संक्षिप्त परिचय : भारत में एक और निर्भय कांड हुआ। इसी कांड पर यह कविता पाठक की आँखें खोलने के लिए। पढ़िए नारी अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाती यह कविता।

उस परिवार के दर्द को समझकर देखो,
परखकर देखो, अपने आप को वहां रख कर देखो ।
ये सिस्टम ये नेता अभिनेता बने बैठे हैं,
संगीन अपराधी है, फिर भी हैवानियत छुपाये बैठे हैं ।।

गरीब की बिटिया को बेचने पे उतारू है,
इज़्ज़त लूटने के बाद,
खुद की इज्जत को छुपाने पे उतारू है,

रात को अग्नि में शरीर जला दिया, कलयुग का दौर है “मित्रों”
सिर्फ इंसान नही, यहां इंसानियत को जला दिया ।।

हिन्दू धर्म, रीती रिवाज, बदलता हुआ ये समाज,
आज एक निर्भया जली, कल दूसरी जलेगी ।
हवस के सबूत मिटाने के लिए,
इन दरिंदो के सामने किसी की ना चलेगी ।।

आप जिन्दा हैं, जिन्दा रहे, जिन्दा रहते आप मर चुके हो,
इंसानियत बची है अगर, क्या हिन्दू धर्म समझते हो ?

जलती हुई लाश में आपके परिवार की भी लाश होगी,
बहन होगी, बेटी होगी, वो भी कोई रात होगी,
डरिये अपने आप से किस समाज में जी रहे हैं आप ?
मौत तक प्रशासन साथ ना दे, मौत के बाद आग ना दे ।।

उस निर्भया की आवाज़ सुनकर सहम उठता है मन ।
ऐसी अनेक निर्भया होंगी, जिससे डरता है मन ।।

आनेवाले समाज और विचारों को अपनाने वालों,
डरो अपने आप से, समाज से, विश्वास से
मिलाओ अपनी आवाज़, निर्भया की आवाज़ से ।।


कैसी लगी आपको यह नारी पर अत्याचार कविता , जो एक हिन्दी कविता है ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।


कवि के बारे में जानने के लिए पढ़े यहाँ: अक्षय कंडवाल


पढ़िए ऐसी ही नारी पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाती और कविताएँ:

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