मुझे याद आते हैं वो गर्मी के दिन | mujhe yaad aate hain wo garmi ke din | हिंदी कविता | short hindi poem

डॉ. भावना शर्मा | Written by Dr. bhawna sharma

मुझे याद आते हैं वो गर्मी के दिन, एक छोटी सी कविता जिसे लिखा है डॉ. भावना शर्मा ने

संक्षिप्त परिचय: हम सब के लिए सब से क़ीमती होते हैं बचपन के वो मासूम दिन। इस कविता में कवियत्री अपने बचपन में बिताए गर्मी के दिनों को याद करती हैं।

मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन।
अपनों के साथ बिताये हुए,
मई-जून की गर्मी के दिन,
और स्कूल की छुट्टी।
जब दिन में बिजली का जाना,
टट्टर पर गीली चादर डालना,
दरवाजों और खिड़की को खोलना,
और उस पर भी गीली चादर लगाना,
लू की गरम हवा को भी ठण्डा करना ।
मुझे याद आते हैं वो गर्मी के दिन ।


कुल्फी वाले का दोपहर में इंतज़ार करना,
याद है जब कुल्फी वाले का आना,
दौड़कर उसको रुकवाना,
और जल्दी से कुल्फी खत्म करके,
दूसरी कुल्फी खाने के लिए तैयार रहना ।
मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन ।

वो दोपहर में छुपकर आँगन में जाना,
नीम के पेड़ पर चढ़कर,
पतंग उतारना ।
फिर शाम होते ही छत पर जाना,
और पतंग उड़ाना ।
कटी पतंग देख कर, लूटने की
कोशिश करना,
और उसके पाते ही, अपनी जीत की
खुशी मनाना ।


मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन।
शाम को आँगन और छत पर,
पानी का छिड़काव करना,
उसकी ठंडक का एहसास होना ।
गर्मी में मम्मी का, मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाना,
और उनका पसीने में तर बदर हो जाना ।
फिर भी खुश होकर खाना खिलाना,
पकौड़ी वाली कढ़ी बनाना,
घंटों उसे चूल्हे पर पकाना ।
उस कढ़ी को चावल के साथ,
सब का चट कर जाना ।
उस स्वाद और सुगंध को कभी न भूलना ।
मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन ।


वो बाबू का सुलेख कराना ।
कॉपी, पेंसिल, रबड़, कटर थोक के भाव
अलमारी में रखना ।
सुबह सुलेख देकर जाना,
अगली सुबह उसे देखना ।
फिर अलमारी से गेंद खिलौने देना ।
कभी टॉफी-मिठाई मंगाना,
तो कभी पैसे देकर जाना ।
मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन ।


बड़ी बहन का सुबह नाश्ता बनाना,
माँ के काम में हाथ बंटाना ।
कोई मेहमान आये तो उसके लिए नाश्ता लगाना ।
और अपनी छोटी बहनों के साथ समय बिताना,
उन्हे कढ़ाई बुनाई सिखाना ।
बड़ी बहन का छोटी बहन का माँ की तरह ख्याल रखना ।
मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन ।


माँ के साथ चिप्स, आलू के पापड़ बनवाना,
धूप में सुखाना, फिर उतार कर डिब्बे में भरना ।
शाम को सेकना, सब का मिल बाँट कर खाना ।
बड़ी बहन के सारे कर्तव्य निभाना,
सब को साथ लेकर कर चलना ।
बाबू के बिना कहे ही सारे काम कर देना ।
मुझे याद आते हैं, वो गर्मी के दिन।
अपनों के साथ बिताये हुए
मई-जून की गर्मी के दिन ।


कवियत्री के बारे में और पढ़ें यहाँ: डॉ. भावना शर्मा

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PC: Christine Roy

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