कटोरे में जल | जल पर कविता

रोहताश वर्मा 'मुसाफिर' की कविता

रोहताश वरमा 'मुसाफ़िर' की कविता | कटोरे में जल

संक्षिप्त परिचय : आज जब पानी की कमी एक समस्या बन के उभर रही है – इसका प्रभाव सिर्फ़ मनुष्यों पर ही नहीं, और जीव जंतुओं पर भी पड़ रहा है। इतने में एक कटोरे में जल भर के रख देने का महत्व समझाती है रोहताश वर्मा ‘मुसाफिर’ की यह कविता।

प्यास की व्याकुलता ने,
हजारों सांसें छीनी हैं।
खेतों में, बागानों में भी,
विषैली गंध भीनी-भीनी है।
कहाँ पर जाएँ ? कहाँ पर खाएँ?
शुद्ध भोजन कोई चखता नहीं।
धरा भी प्यासी हुई,
कटोरे में जल कोई रखता नहीं।  
कवक, शैवाल भी मुरझाए हैं,
केंचुओं की भी हालत बुरी।
व्यथा घनी वृक्षों की यहाँ,
गर्दन पर चलाते आरी, छुरी।
वीरान होती हरी भूमि,
शिक्षित समाज भी जगता नहीं।
नदियाँ भी प्यासी हुई,
कटोरे में जल कोई रखता नहीं।।  

रोहताश वर्मा ” मुसाफ़िर ” पता-खरसंडी (राजस्थान)  
यह मेरी रचना स्वरचित व मौलिक तथा अप्रकाशित है।  


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कविता के लेखक रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’ जी के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े ।


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3 thoughts on “

कटोरे में जल | जल पर कविता

रोहताश वर्मा 'मुसाफिर' की कविता

  1. तहेदिल से शुक्रिया जी आपका 💐💐🙏🙏

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