एक भावांजलि ….दशहरा पर | एक कविता

कवि प्रभात शर्मा जी की रचना

एक भावांजलि ....दशहरा पर | प्रभात शर्मा जी की कविता

संक्षिप्त परिचय : दशहरे के महत्व को शब्दों में उतारती यह एक कविता है – भावांजलि दशहरे पर।

रावण ने रावण को मारा ,और भीष्म ने भीष्म को ,
कालजयी थे दोनों योद्धा विह्वल किए थे ईश को ।

केशव को थे शस्त्र गहाए , महा पितामह भीष्म ने ,
स्वयं ही मारक भेद बताए पाञ्चाली , द्वारिकेश को ।

शस्त्र ,अस्त्र भी बिफल हुए थे,शक्ति-साधना-विवश हुए थे ,
रावण ने भी आशीष दिए थे , पुरुषोत्तम श्री राम को‌ ।

रावण सा विद्वान नहीं था , भक्त और बलवान नहीं था ,
राजनीति का पण्डित था वह , वेदों का विज्ञानी था ।

मर्यादाओं का पोषक था , अरि घालक , कुल पालक था,
इन्द्रजीत सा सुत जिसका , मय तनया प्रिय पालक था ।

उच्च कुलीन, विप्र , आचार्यी, विपुल धनी,अमृत उर धारी ,
दशों दिशाओं का था स्वामी ,दैव-जयी और महा प्रतापी ।

किन्तु श्रापवश दानवीय था , महा तामसी ,अति दम्भी था,
भिज्ञ सभी परिणामों से था , किन्तु विवश आचारों से था ।

” खर-दूषण मो सम बलवन्ता,तिनहि को मारैं बिनुभगवन्ता ।”
” होइ भजन नहिं तामस देहा ” किन्तु विवश व्यवहारों से था ।

सुनियोजित,कुलद्रोही कह कर , भातृ विभीषण वहाँ भेज कर ,
निज वंशज अभिषेक करा कर ,तभी युद्ध आरम्भ किया था ।

शक्ति दिखा कर ,भक्ति-अंश की, मुक्ति करा कर असुर वंश की ,
सम्पति , नारी , देख सुरक्षित , छोड़ विभीषण अपना वंशज ।

फिर भी पूर्ण युद्ध – कौशल से दैव – दनुज अचरज में डालें ,
नाग – पाश में भी प्रभु बांधे ,विकल,विह्वल ,बहु भांति उखारे ।

शक्ति हीन ,श्रम सिक्त विपुल कर ,पूर्ण विशुद्ध आत्म निर्मल कर ,
तामस देह त्यागि तब रावण ,अन्त समय ,श्री राम उचारे ।

कुल घालक नहीं , पालक था वह, खुद को यह विश्वास दिया था ,
शत्रु नहीं , भगवान है हन्ता ,राम नहीं , है जगत नियन्ता ।

मोक्ष सुनिश्चित कर निज कुल का राज निरन्तर निज वंशज का
राम – प्रवेश न हुआ लन्क में , लक्ष्मण ,हनु , अभिषेक कराए ।

रावण लोक गया श्री हरि के , हरि लंकापुर नहीं जा पाए ,
भाव-जयी लंकापति हर विधि , विजयी -श्री श्री राम कहाए ।

रावण दम्भी ,असुर , तामसी , राम, तपस्वी , मर्यादित थे ।
रावण पापी ,औ अतिरेकी , छल, प्रपंच औ पाखण्डी थे ।

आसुरि , तामसी भक्ति निरर्थक , लोक-नीति बिनु राज निरर्थक ,
व्यर्थ धर्म, आचरण,होम ,तप ,धन,बल ,ज्ञान सन्त ,सन्तति सब ।

भृष्ट आचरण ,रीति,नीति जब ,नहिं शुचि-बुध्दिऔ राजनीति तब ,
है सब का प्रतीक यह रावण ,नित्य मरे , यदि लोक-प्रीति बिनु ।

सत्ता शीर्ष विराजें प्यारे ! नित्य करो चिन्तन मिलि सारे,
राम नहीं यदि बन पाओगे राम – राज नहीं ला पाओगे ।

राज-धर्म से हट जाओगे , दोनों लोक गंवा जाओगे
लोकप्रीति को मन में लाओ, जनहित करो राज फिर पाओ ।

सभी आसुरी शक्ति मिटाओ,दैव तुल्य आचरण निभाओ ,
जब भी राम से राजा होंगे , तब ही राम-राज्य आएगा ।
………तब ही राम राज्य आएगा ,
…………………..तब ही राम राज्य आएगा ।

..….. प्रभात शर्मा १५.१०.२०२१🙏🌹🙏


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