संक्षिप्त परिचय : पितरों के लिए आदर-सम्मान और उनके लिए हमारे मन की श्रद्धा और आस्था पर है उषा रानी जी की यह कविता – ‘आस्था के पितर’।
मन हमारा आस्था का आंगन,
जहाँ खिलते प्रेम और विश्वास के फूल, आदर- सम्मान की धरा पर
श्रद्धा-पूर्वक पूजा करना,
विधी पूर्वक पितरों का तर्पण करना, हमारे संस्कारों के साथ,
मन में बैठा अनिष्ट का डर करवाता, श्रध्दा पक्ष में घरों में
अपने पूर्वजों का तिथिनुसार
ब्राह्मण- ब्राह्मणी को भोजन करवाना, जन्म- जन्मांतर तक
शुभ फलदायी माना जाता है।
भारत भूमि के कण-कण में
आस्था- विश्वास की नदी बहती है
तीर्थों की दुनिया में जाकर मन
अपने अपराधों की क्षमा माँगता
और पापमुक्ति की याचना करता
पितरों को प्रसन्न करने के लिए
कौओं को, गायों को और
ब्राह्मणों को आदर के साथ
भोजन कराया जाता।
इस तरह हम अपने पूर्वजों को
याद करते हुए कर्ज उतार कर
तनाव मुक्त हो जाते।
पितरों का आदर- सम्मान ही
हमारे जीवन को, हमारे घर को
आस्था का आंगन देते हैं।
स्वरचित कविता
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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Photo by Paul Bulai
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