संक्षिप्त परिचय: अपनेपन का अहसास जताती – एक घर की समय के साथ बदलती कहानी बयाँ करती है उषा रानी जी की यह कविता।
बरसों से बंद ताले में जंग लग रहा,
उस घर के सारे दरवाजे-खिड़कियाँ भी बंद,
कभी हंसी- ठहाकों से
गुलज़ार रहा वह घर🏡 ।
आज धूल-धुसरित है
उसका घर🏡 आंगन ।
जर्जर होती दीवारें
उदास मौन खड़ा है वह घर ।
अपने अकेलेपन से जूझता
प्रतीक्षा करता किसी के आने का ।
इस घर से जुड़े खुशहाल रिश्तों
के लौट आने का ।
उम्मीद के उन सिक्कों की तरह
जो खो जाने के बाद
फिर मिल जायें खुशियाँ की तरह ।
समय का बदलाव जाने
कितनी दूरियों में बिखेर गया,
आशा- विश्वास के रिश्तों को
खनकते सिक्कों की तरह ।
पर संवेदनाओं के तार जुड़े रहते,
हवा-पानी के मिलते ही
जैसे मिट्टी में अंकुर🌱 फुट जाते,
अनुकूल वातावरण भी जिंदा कर देते अपनेपन के अहसासों को ।
रिश्ते कभी मरते नहीं,
विश्वास की संजीवनी जिंदा रखती
जो प्रेम जल से निरंतर सींचे जाते
तो उम्मीदों के सिक्के चमकने लगते – जीवन में रंग भरने लगते ।
स्वरचित कविता
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
कैसी लगी आपको यह घर पर कविता ‘अपनेपन का एहसास ’ ? जो एक एहसास को दर्शाती है की घर में कैसे अपनों के साथ लगता है । कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवयित्री को भी प्रोत्साहित करें।
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