बेगुन-कोडार | भूत की कहानी

जुबैर खाँन | S Zubair Khan

बेगुन-कोडार | जुबैर खाँन की कहानी | भूत की कहानी

संक्षिप्त परिचय – क्या हुआ था बेगुन-कोडार रेल्वे स्टेशन पर कि उसे हमेशा के लिए बंद कर दिया गया? पढ़िए यह भूत की कहानी ‘बेगुन-कोडार’ जिसे लिखा है जुबैर खाँन ने।

यह कहानी सन् 1967 की रेलवे स्टेशन बेगुन-कोडार बंगाल की है, कहा जाता है रेलवे स्टेशन पर एक लड़की का साया नज़र आता है। कहते हैं, वहाँ एक लड़की नाचते-नाचते रेल की पटरी पर गिर गयी थी, इस दौरान उसकी मृत्यु हो गई, ओर उसकी रूह बदला या अपनी इच्छा पूरी करने वहाँ आती है। एक बार जब किसी स्टेशन मास्टर जी का श्रीनगर से बेगुन-कोडार रेलवे स्टेशन पर ट्रांसफर हुआ था, उनके साथ क्या-क्या हुआ मैं इस कहानी में बताने जा रहा हूँ।

सुबह का समय करीबन 9:00 बजे का ( राम दिनकर ऑफ़िस मे प्रवेश करते हैं ), रामजी लाल कुर्सी पर बैठे हुऐ हैं (फाइल देखते हुए)

रामदिनकर – आपने बुलाया सर।

रामजीलाल ( बॉस – गुस्से में ) – हाँ, मैंने बुलाया है। बहुत कहते थे न मेरा ट्रांसफर करा दो, सर मुझे डाकुओं के शहर मे डर लगता है , तो यह लिजिए ट्रांसफर कर दिया हमने तुम्हारा, बेगुन-कोडार में।

रामदिनकर –  सर, बेगुन-कोडार में ही क्यों? मैंने तो इलाहाबाद का माँग था और आपने मुझे “बेगुन-कोडार”  ट्रांसफर दे दिया। इतनी जल्दी! तीन दिन पहले तो मैंने आपसे कहा था और आज मुझे ट्रांसफर इलाहाबाद की जगह “बेगुन-कोडार”का दे दिया।

रामजीलाल – मैंने आपको इलाहाबाद की जगह बेगुन-कोडार इसलिए दिया है क्योंकि बेगुन-कोडार के अलावा कहीं जगह ख़ाली नहीं हैं।

रामदिनकर – मैं नहीं जा सकता, सर। मुझे आप इलाहाबाद का करा दो तो अच्छा है।

रामजीलाल – अब यह कैन्सल नहीं हो सकता, और कहीं भी कोई आपको नौकरी देने को तैयार नहीं होगा। वैसे भी आपकी उम्र पचपन की हो गई है , ओर आपकी एक लाडली बेटी सुषमा है उसकी शादी करनी है, सोच लो नौकरी बचानी है आपको या ट्रांसफर ऑर्डर।

रामदिनकर – ठीक है सर। ऐसी बात है तो मै ज़रूर जाऊँगा ।

रामजीलाल – कल मेरा ड्राइवर आपको बेगुन-कोडार तक छोड़ देगा।

रामदिनकर – ठीक है सर।

रामजीलाल – जाओ घर जा कर अपनी बेगुन-कोडार जाने की तैयारी करो।

रामदिनकर – जी सर ( इतना कहकर रामजीलाल जी बाहर चले जाते हैं, और रामदिनकर जी अपने घर आ जाते है )

(रामदिनकर घर पे प्रवेश करते है। घर के दरवाज़े से चिल्लाते हुए अपनी पत्नी को पुकारते हैं। सोफे पर बैठ जाते हैं और एक गहरी साँस बाहर छोड़ते हुऐ कहते हैं )

रामदिनकर – गायत्री जी कहाँ हो !  ज़रा पानी लाओ प्यास लगी है।

(रामदिनकर सोफे पर बैठकर  जूते उतारते है , इतने में उनकी बेटी सुषमा पानी ले कर आती है और अपने पापा को पानी देती है। सुषमा अपने पापा को उदास देखती है और कहती है -)

सुषमा – लीजिए पापा जी पानी, आप इतने उदास क्यों लग रहो हो ?

(रामदिनकर सोफे पर बैठकर हाफते हुऐ पानी का गिलास लेते हैं, कहते हैं !)

रामदिनकर – क्या छुपाये आपसे बेटा जी, बहुत ही दुख की बात है। आज ट्रांसफ़र ऑर्डर आया है। मेरा इलाहाबाद की जगह  बेगुन-कोडार ट्रान्स्फ़र हो गया है। अगर मैं नहीं जाऊँगा तो मेरी नौकरी जा सकती है। मैं अगर छोड़ दूँ नौकरी तो मुझे कोई नौकरी नहीं देगा और हमको कल ही बेगुन-कोडार के लिए जाना है। बेटा सुषमा आज कॉलेज पढ़ने नहीं गए ?

सुषमा – नहीं पापा जी, आज मेरे बेस्ट फ्रेंड की बर्थडे पार्टी है। मैने आज छुट्टी ली है ।

रामदिनकर – ठीक है। पर तुम्हारी माँ कहा है?

सुषमा – पापा जी, वो माँ मंदिर गयी है।

रामदिनकर – कितनी देर हो गई गये हुए ?

सुषमा – आधा एक घटां हो गया। बस वो आती ही होगी ।

(उसी समय गायत्री जी का घर मे प्रवेश होता है। वे सबको आरती देती हैं।  )

रामदिनकर – गायत्री जी, अपना सारा समान पैक कर लो। हमें कल बेगुन-कोडार निकलना है।

गायत्री –  तीन दिन पहले आपने ट्रांसफर ऑर्डर मांगा था और आज ही आपको ट्रांसफर ऑर्डर दे दिया? वो भी बेगुन-कोडार में? मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है।

रामदिनकर – अब क्या करूँ? ट्रांसफर ऑर्डर मिल गया है अब यह कैन्सल नहीं हो सकता। डाकुओं से अच्छा है, मैं  भूतिया रेलवे स्टेशन पर मरूँ।

गायत्री – शुभ बोलो जी ! अभी तो आप सौ साल जियोगे।
(इतना कहकर गायत्री जी कमरे मे समान पैक करती हैं। उधर बाहर रामदिनकर जी अपने बॉस रामजीलाल से बातचीत कर रहे होते हैं ! बात खत्म होते ही वो सोने चले जाते है।)


सुबह का समय करीबन  7:00 बजे रामजीलाल का ड्राइवर जिसका गोल चेहरा और रगं साँवला है। खाकी ड्रेस में कार की सीट पर बैठे हुए एक हाथ से मूछों को कंघी करते हुए और एक से हॉर्न देते हुए कहता है – “साहब जल्दी आओ। ” वो इतना ही कह पाता है और तभी रामदिनकर जी और उनकी पत्नी गायत्री आ जाते हैं। रामदिनकर अपनी पत्नी को कार में बिठालते हैं और अपना सामान कार की छत पर रख देते हैं। सामान रखने के बाद कॉलेज के लिए नीली-ग्रे साड़ी मे कंधे पर ब्राउन बेग टांगे हुए उनकी बेटी आ जाती है, कहती है – “पापा मैं अपने पेपर समाप्त होने के बाद एक हफ्ते मे आ जाऊँगी।” इतना कहने के बाद सुषमा कॉलेज चली जाती है । रामदिनकर जी कार में बैठ जाते हैं और गाड़ी चलने लगती है। कभी ऊबड़-खाबड़ से, कभी कच्चे रास्तों से होती हुई गाड़ी अपने निर्धारित समय पर बेगुन-कोडार गांव के 10 किलोमीटर की दूरी पर आकर ड्राइवर गाड़ी रोक देता है और कहता है –

ड्राइवर – सहाब अब यहाँ से किसी रिक्शे या बैलगाड़ी से चले जाइए मैं इससे आगे जा नहीं पाऊंगा।

रामदिनकर – आखिर क्यों नही जा पाओगे इससे आगे?

ड्राइवर – तुम्हे नहीं पता फिर भी मरने जा रहे हो।

रामदिनकर – क्या मतलब?

ड्राइवर –  ( उचें स्वर मे) मतलब यह की वहाँ भू भू……मतलब कुछ नहीं ।

रामदिनकर -( गुस्से मे ) क्या कहा तुमने? भूत डाकुओं से अच्छा है, मैं आत्मा से मरू ज़रा मुझको सूकून तो मिलेगा। पता नहीं लोग समझते क्या हैं? मुझको ही तबला समझते है। जो आता है बाजा के चला जाता है ।

ड्राइवर – हाहाहा हहहह….

(गायत्री जी अपने पति को शांत करने के लिए अपना चेहरा अपने पति की तरफ करके अपनी सीधे हाथ की उंगली से शातं रहने का इशारा  देती है। “शशशशश……” वह इतना इशारा देती हैं। तो वह चुप हो जाते हैं। गाड़ी से दोनों उतर जाते हैं और सामान कार की छत से ड्राइवर उतार देता है और चला जाता है।

उल्टे हाथ पे गाड़ी खड़ी थी, ठीक उसी हाथ पर रामदिनकर और उनकी पत्नी हैं और कुछ समान रखा हुआ है। रामदिनकर जी लिफ्ट मांगते हैं। उनको कोई लिफ्ट भी नहीं देता। सब लोग  बेगुन-कोडार के नाम से घबराते थे। कोई गाड़ी रोकने के लिए तैयार ही नहीं था।

उनको खड़े-खड़े तकरीबन 12:30 बज गऐ थे।  उन्होंने देखा कि कुछ हल्की रोशनी सी आ रही है। पास आते-आते उन्हें बैलगाड़ी में दो आदमी दिखाई पड़ते हैं – एक बुड्ढा और एक जवान हट्टा-कट्टा। करीब आते ही बैलगाड़ी रूक जाती है। हाथों मे लालटेन, सर पर राजस्थानी (लाल) पगड़ी, सीधे हाथ में हल्की पीली लम्बी लाठी और उल्टे हाथ मे हल्की हरी लालटेन लेकर उतर के बूढ़ा आदमी आता है, साथ में लड़का भी आता है जो सफेद धोती कुर्ते में है ,और वह उन के नज़दीक आकर पूछता है –

बूढ़ा आदमी – आप इतनी रात गये यहाँ क्या कर रहे हो ?

रामदिनकर – हम श्रीनगर से आये हैं , मेरा यहाँ बेगुन-कोडार रेलवे स्टेशन में ट्रांसफर हो गया है ।

बूढ़ा आदमी – जहाँ डाकुओं का ज्यादा आतकं है – श्रीनगर को छोड़कर तुम इस बेगुन-कोडार बसने चले आये? शायद आपने बेगुन-कोडार के किस्से, कहानियाँ नहीं सुनी। यहाँ दो दिन के ज़्यादा स्टेशन पर कोई नहीं रूकता ।

रामदिनकर – समझा नहीं मैं बाबा, आप क्या कह रहे हैं?

बूढ़ा आदमी – समझने के लिए दिल  चाहिए, वो तुम्हारे पास है नहीं। चलो आओ मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ। मैं भी वहीं जा रहा हूँ – शान्ति लाल मुखिया जी के पास।
(इतना कहने के बाद दोनो अपना समान रख देते हैं , रामदिनकर उनकी पत्नी गायत्री ओर बाबा पीछे बैठ जाते हैं। बूढ़े आदमी का लड़का चाबुक से हाकता हुआ बग्गी को आगे बढ़ाता है। बग्गी जैसे -जैसे आगे बढ़ती है – तो बूढ़ा आदमी धीमे स्वर मे कहता है –

बूढ़ा आदमी – अब भी वक्त है , साहब कल सुबह होते ही आप वापस लौट जाएँ।

(रामदिनकर हंसकर जवाब देते हैं )
रामदिनकर – हहहह हहहह, आप कहते हैं कि मैं लौट जाऊँ? जैसे-तैसे मुझे यहाँ का ट्रांसफर मिला है। और मैं लौट भी जाऊँ तो मेरी नौकरी भी गई ।

बूढ़ा आदमी – आपकी यही ज़िद है, तो मैं आपको रोकूगां नहीं ।

बूढ़ा आदमी रामदिनकर को ताबीज़ देता है मगर वह लेने से इंकार कर देते है। गायत्री जी को वह बूढ़ा आदमी ताबीज़ देता है और कहता है ।

(धीमे स्वर मे ) बूढ़ा आदमी – ये ताबीज़ अपने पति को पहना कर भेजना। सुबह ऑफ़िस जाएँ तो पहनकर जाएँ .

(बात करते – करते कब बेगुन-कोडार पहुंच गये पता ही नहीं चला )

बूढ़े आदमी का लड़का उच्च स्वर में आवाज़ लगा के कहता है, “पिताजी बेगुन-कोडार आ गया।”

तीनों बग्गी से उतर जाते है। बुढ़े आदमी का लड़का सामान उतारता है। बूढ़े आदमी का लड़का रामदिनकर और उनकी पत्नी को गावँ के मुखिया के यहाँ लेकर जाता है, और  बड़े से गेट को बजाता है। टाककककककककक करने बाद अदरं से आवाज़ आती है – “कौन है?”

बूढ़े आदमी का लड़का – “मैं लालाराम का लड़का किशोरी। मेरे साथ स्टेशन मास्टर ओर उनकी पत्नी आयी हैं।”

दरवाज़े के अन्दर से आवाज़ आती है -” ठीक है।”
दो – तीन मिनट बाद दरवाज़ा खुल जाता है। सीढ़ी पर मुखिया जी आ रहे होते हैं। दिनकर जी नमस्ते करते है,और अपने आने का कारण बताते हैं। मुखिया जी अपने गेस्टहाउस मे रूकने के लिए गेस्ट्हाउस की चाबी देते हैं। रामदिनकर जी और उनकी पत्नी मुखिया जी के यहाँ नहा-धोकर, खाना खा कर अपने गेस्टहाउस सोने चले जाते है।

सुबह करीब 5 बजे रामदिनकर की पत्नी उठ जाती हैं। पूजा पाठ करती हैं और कमरे में आरती लेकर आती है। इतने मे रामदिनकर नहा कर तैयार हो जाते हैं। तब उनकी पत्नी बाबा का दिया हुआ ताबीज़ उन्हें पहनाते हुए कहती है – “यह ताबीज़ आपको बुरी-बला से बचाये।”

गायत्री जी की बात खत्म होने के बाद रामदीनकर जी कहते हैं – “मुझे आज तक कोई हानि हुई है जो अब मुझको होगी?”
(इतना कहकर वह  स्टेशन पहुंच जाते हैं। सुबह के सात बजे, वहाँ जैसे पहुंचते हैं तो देखते हैं कि रेलवे स्टेशन  के ओफिस बदं है ,गेट के बाहर चपरासी को पूछते है, मुझे यहाँ के बॉस  से मिलना है,

चपरासी – “लिजिए सर चाबी ! सर आपका ही इंतजार कर रहा था, आप आ गये वैसे आपने कितने पैसे लिए है यहाँ रूकने के? पाचँ लाख या दस लाख ?”

रामदिनकर – “मतलब क्या है तुम्हारा?”

चपरासी – “मतलब कुछ नहीं, ऐसे ही ।”

चपरासी रामदिनकर जी से कहता हुआ जाता है – “अगर आप भूत-पिशाच से बच जाओ तो बता देना। मैं आपकी ज़िंदा रहने की मिठाई बाँटूँगा। ठीक है सर।” 

इतना कह कर चपरासी चला जाता है। रामदिनकर जी ऑफ़िस खोलते हैं और साफ – सफाई वाला नौकर वहाँ आ जाता है। कुछ अपने यहाँ आने का कारण बताता है। वह कहता है – “यहाँ आपका ज्यादा देर रूकना मना है।” उसकी बातें सुनकर रामदिनकर जी बोलते है – “रब चाहे मुझे कुछ नहीं हो सकता। मैं चाहूँ भी तो भी कुछ नहीं हो सकता।”

नौकर ऑफ़िस की सफाई मे जुट जाता है। कुछ देर में नौकर उनको 5:00 बजे ऑफ़िस बंद करने की सलाह देता है ।  कुछ दिन ऐसे ही काम चलता रहता है। एक दिन वो अपना ताबीज़ घर भूल जाते हैं, ज्यादा काम होने की वजह से उन्हें काफी रात हो जाती है काम करते – करते, कब रात के करीब 9:00 बज  जाते है , पता नहीं चलता।

उनकी पत्नी का फोन आता है। वो कहती है – “आप जल्दी घर आ जाईये मुझे  कुछ ठीक नहीं लग रहा है।”

इस पर दिनकर जी कहते हैं – “पाँच मिनट मैं निकलता हूँ, ठीक है?” फिर वह फोन रख देते हैं।

उनके साथ अज़ीब – अजीब सी घटनाएँ होने लगती हैं। बल्ब का बंद या चालू होना, कुर्सी मेज़ का हिलना, पायल की छन-छन की अवाज़, पानी से नल का बहना जैसी आवज़े आती रहती हैं। यह आवज़े बंद होने के बाद फिर लाईट चली जाती है। वह टेबल पर रखी टॉर्च उठाते हैं। उनको किसी के रोने की, शोर शाराबे की आवज़े आती है। वह टॉर्च जला कर बहार आते है । वहाँ कुछ चार लड़के बैठे हुए मदिरापान करते हुए एक लड़की से कहते है – “once more.. एक और बार डांस करते रहो, अगर तुम डांस करके हमें खुश करदोगी , तो मैं तुम्हारे प्रेमी आनंद को अपनी क़ैद से आज़ाद कर दूँगा।”

लड़की नाचती रहती है। वह नाचते – नाचते रेल की पटरियों पर गिर जाती है। जिस पटरी पर ट्रेन आ रही होती है उसी ट्रेन से वो मर जाती है। और रामदिनकर दोनों हाथ आँखों पर रख लेते है। जब आँखों से दोनों हाथ हटा कर देखते हैं  तो उनके सामने दृश्य गायब हो जाता है। फिर उनके कंधे पर हाथ रखा हुआ देखते हैं तो वह डर जाते हैं, वो उससे कहते हैं – “कौन हो तुम?”

वह लड़की कहती है – “मैं वही हूँ, जिसका तुम नाच देख रहे थे। नाच देखते हुए बहुत मज़ा आ रहा था तुमको। मैं गिर रही थी , फिर भी मुझे  बचाने नहीं आये?” 

इतना सुनकर रामदिनकर जी भागने लगते हैं। तभी लड़की आँखों से इशारा करके उन्हें रेल की पटरीयों पर फेंक देती है। तभी उनकी मृत्यु हो जाती है।

सुबह सूचना पाकर उनकी पत्नी आती है। रेल की पटरी पर  मरा हुआ अपने पति को पाती है। उनके साथ तांत्रिक बाबा भी आते हैं, कहते है – “मना किया था मैंने, रेलवे स्टेशन नहीं खुलना चाहिए। फिर भी तुमने खोला। तुम में से किसी ने मेरी बात नहीं मानी।”

इतना कहने के बाद वो अपनी झोली मे से लाल सिंदूर निकालता है। मुठ्ठी मे तंत्र साधना करता है। पटरी पर सिंदूर से रेखा खींचता है।

फिर इस घटना के बाद कोई रेलवे स्टेशन पर नहीं आया ! और उस (बेगुन-कोडार ) रेलवे स्टेशन को हमेशा के लिए बदं कर दिया गया ।

लेखक – जुबैर खाँन


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इस हिंदी कहानी  ‘बेगुन-कोडार’ के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


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