संक्षिप्त परिचय: होली का त्यौहार हो और कान्हा की बात ना हो ऐसा तो हो नहीं सकता। कान्हा की ही नटखटता और होली की मस्ती का अनोखा संगम है उषा रानी जी की यह कविता।
चलो कान्हा संग खेलें होली, रंग बिरंगी मस्त होली।
वृंदावन की कुंज गली में,
जहाँ प्रेम की बजती बांसुरी,
नटखट कान्हा भरे पिचकारी
राधा संग कान्हा खेलें होली।
चलो कान्हा संग खेलें होली,
रंग-बिरंगी मस्त होली।
फागुन की चली पुरवाई,
गोपियों के प्राणों में समाई,
कान्हा की झलक पाने को
गोपियाँ ढूँढें गली-गली।
चलों कान्हा संग खेलें होली,
रंग बिरंगी मस्त होली।
बरसाने की राधा संग सखियाँ,
वृंदावन में ग्वालों संग कान्हा,
कुंज वन में हुआ सामना
इंद्रधनुषी रंगों की छटा निराली।
चलों कान्हा संग खेलें होली,
रंग बिरंगी मस्त होली।
धूम-धड़ाका करें कान्हा,
रंग भर पिचकारी मारे कान्हा,
राधा भीगी भीगी शर्माये,
बुरा ना मानो, आई होली।
चलो कान्हा संग खेलें होली
रंग बिरंगी मस्त होली।
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
स्वरचित कविता
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान.
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Photo by Sandra Seitamaa
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