संक्षिप्त परिचय : नारी एक जीवन में कई भाग निभाती है, कई रूप लेती है। इन्हीं सब रूपों का गुणगान करती है सुंदरी अहिरवार की महिला दिवस पर विशेष यह कविता ।
नारी माता, बहन है !!
नारी जग का मूल । …!!
बिन नारी बनता नहीं!!
एक सुखी परिवार !!
नारी से घरबार है!!
है रिश्तों में जान !!
“नारी “लक्ष्मी!!
“नारी” शारदा!!
“नारी” दुर्गा रूप है!!
“नारी” शिशु को जन्म दे!!
करे जगत विस्तार है !!
“नारी” से घर स्वर्ग है!!
रहता प्रभु का वास !!
अबला से सबला हुई!!
देखो नारी आज !!
“नारी” के गुणगान से!!
” भरा हुआ इतिहास “
कैसी लगी आपको महिला दिवस पर विशेष यह कविता ‘नारी जाग का मूल’ ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवयित्री को भी प्रोत्साहित करें।
कविता की लेखिका सुंदरी अहिरवार के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए महिला दिवस विशेष एक और कविता :
- औरत तुम: औरत होना आसान नहीं है। प्रकृति ने भी तो उसे कितनी ज़िम्मेदारियाँ दी हैं निभाने को। ऐसी ही औरत की खूबियों पर प्रकाश डालती है यह कविता ।
पढ़िए नारी पर उनकी एक और कविता :
- नारी: सुंदरी अहिरवार की यह कविता नारी पर है। यह कविता नारी के विशेष गुणों पर प्रकाश डालती है।
पढ़िए उनकी अन्य कविताएँ:
- धूप और छांव: हमारे जीवन में माता-पिता का महत्व कभी कम नहीं होता। यही बात समझाती है ‘सुंदरी अहिरवार’ की यह कविता ‘धूँप और छांव’।
- अंधेरे से उजाले की ओर: कवयित्री सुंदरी अहिरवार की ये एक उत्साह बढ़ाने वाली कविता है। इस कविता के माध्यम से वे पाठक को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं।
- दीपावली: सुंदरी अहिरवार की यह कविता दीपावली के त्यौहार पर दीपावली का महत्व समझाते हुए, त्यौहार को मनाने की प्रेरणा दे रही है।
नारी पर ही कुछ कहानियाँ:
- भग्नावशेष: यह कहानी सुभद्रा कुमारी चौहान के कहानी संग्रह ‘बिखरे मोती’ की एक कहानी है। क्यों एक प्रतिभा से भरी युवती, दस साल बाद बस एक भग्नावशेष प्रतीत हुई लेखक को? जानने के लिए पढ़िए ये कहानी।
- बड़े घर की बेटी : आनंदी एक बड़े घर की बेटी है परंतु जहां उसका विवाह होता है वह घर उसके मायके जैसा नहीं होता। वह घर के हिसाब से अपने आप को ढाल लेती है बिना किसी शिकायत के पर एक दिन कुछ ऐसा हो जाता है कि वह सहन नहीं कर पाती। ऐसा क्या होता है और तब वह क्या करती है? जानने के लिए पढ़िए मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ बड़े घर की बेटी ‘।
- लिली: लिली एक लघु प्रेम कथा है उस समय पर आधारित जब अंतर्जातिय विवाह नहीं हुआ करते थे। खूब पढ़ लेने के बावजूद भी पद्मा के पिता की सोच जातिवाद तक ही सीमित रहती है । उनकी जातिवादी सोच और पद्मा की आधुनिक सोच उन दोनों से क्या करवाती है – जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी – लिली, जिसके लेखक हैं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ।
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Photo by Yash Raut
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