संक्षिप्त परिचय: बसंत ऋतु के आगमन से नए ऋतु के साथ-साथ बहुत कुछ नया आता है। ऐसे ही नए ऋतु में नयी-नयी आशाएँ लिए हुए हैं यह बसंत ऋतु पर कविता ।
फिर से गूँजा है बसंती राग अब जागें सभी,
जुट पड़ें निर्माण में अब छोड़कर आलस सभी ।
पौष में हम जम गए थे, राह में हम थम गए थे,
बैठे थे खुद में सिमटकर, अपने में ही रम गए थे,
जो न अब भी जाग पाया, जाग पाएगा कभी ।
फिर से गूँजा है बसंती राग अब जागें सभी ,
माघ है लाया नया संदेश फिर उत्साह का ,
फिर उठो पाथेय बाँधों चिंतन करो नव राह का ,
जो समय आया है दुर्लभ वो न आएगा कभी,
फिर से गूँजा है बसंती राग अब जागें सभी ।
ये न समझो है कठिन भव बंधनों को तोड़ना,
त्याग कर निज-स्वार्थ सब जन-जन से खुद को जोड़ना,
फागुनी उल्लास में अब मन मुदित होंगे सभी ,
फिर से गूँजा है बसंती राग अब जागें सभी ।
रंग बसंती है मिला गुरुवर से ये अनुदान में,
हम नहीं पीछे हटेंगे, त्याग में बलिदान में,
संकल्प पूरे होते हैं जब मिलके करते हैं सभी,
फिर से गूँजा है बसंती राग अब जागें सभी ।
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कविता के लेखक सुधीर भारद्वाज जी के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े: सुधीर भारद्वाज
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Image by S. Hermann & F. Richter
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