संक्षिप्त परिचय: आरती वत्स की यह कविता देवी शक्ति के बारे में है। इस कविता में वे देवी शक्ति के विभिन्न गुणों और विशेषताओं का सुंदरता से वर्णन करती है।
कभी ख़ुद को प्रभंजन तो कभी बवंडर बना लेती हूँ,
कभी ख़ुद को सलिल तो कभी अनल बना लेती हूँ,
जब चाहूँ धरा को नभ
और नभ को धरा बना लेती हूँ,
मैं कोई कट्टर नारीवाद की हिमायती नहीं
मैं तो बस कभी-कभी
तुझे अपना अस्तित्व याद दिला देती हूँ।
मैं कभी शाश्वत ज्ञानशील व बुद्धिमानी सरस्वती हूँ,
तो कभी रिद्धि-सिद्दी का प्रतीक लक्ष्मी हूँ,
तो कभी-कभार उग्र काली चण्डी का रूप हूँ,
तो कभी विष्णु का चक्र हूँ,
मैं कोई कट्टर नारीवाद की हिमायती नहीं
मैं तो बस कभी-कभी
तुझे अपना वजूद याद दिला देती हूँ।
मैं त्याग व सहनशीलता की मूर्ति हूँ,
मैं यज्ञ की पावन व प्रचंड तरंगें हूँ,
जिस पवित्र जल से तू अपने पाप धोता है
मैं वह गंगा हूँ,
मैं कोई कट्टर नारीवाद की हिमायती नहीं
मैं तो बस कभी-कभी
तुझे अपनी शक्ति याद दिला देती हूँ।
मैं युगों-युगों के तप की तपस्या का फल हूँ,
मैं शिवजी के सिर पर विराजमान गंगा,
त्रिनेत्र के आक्रोश का ध्वंस और ज्वाला हूँ,
मैं अंधेरी रातों का उजाला हूँ,
मैं ही तेरे इस युग की निर्माता हूँ,
मैं कोई कट्टर नारीवाद की हिमायती नहीं
मैं तो बस कभी-कभी
तुझे अपनी विधामानता याद दिला देती हूँ।।
यह कविता आरती वत्स ने लिखी है। उनके बारे में जानने के लिए पढ़े यहाँ: आरती वत्स
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चित्र के लिए श्रेय: nikhilmishra
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GOOD LUCK LADDO