संक्षिप्त परिचय: गणतंत्र दिवस पर विशेष रूप से लिखी गयी यह कविता भारत देश का गुणगान करती है।
आओ तुम्हें वीर देश की एक कथा सुनाऊँ,
सच्ची वीरता को आँखों दिखलाऊं।
जहाँ राम, कृष्ण, परशुराम हुए।
जिसमें वीर विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त अशोक
महान हुए।
शकों , यवनों के काल हुए।
हर्षवर्धन, पृथ्वीराज चौहान हुए
पूरे जग में जैसा हुआ नहीं,
शब्द भेदी बाण हुए।
कूटनीति में कौटिल्य,
आयुर्वेद में संजीवनी, धन्वंतरि, चरक, और पतंजलि
गुरु वैध महान हुए।
नालन्दा, तक्षशीला शिक्षा जगत में विधा के विधान हुए।
राणा सांगा, कुम्भा और महाराणा प्रताप मुगलों के प्रलय काल हुए।
बिन शीश के लड़ने वाले, अश्व सहित शत्रु दल को काटने वाले वीरों के बखान हुए।
नारी भी सव्य दुर्गा बनकर अवतार हुई।
पद्मनी , दुर्गावती, लक्ष्मी बनकर शत्रु की काल हुई।
भगतसिंह, बोस, आजाद और कितने ही वीर देश के लिए कुर्बान हुए।
सुना है नेहरू, गांधी भी क्रांतिकारियों के फल से आबाद हुए।
आज भी हर सैनिक भारत माँ के लिए जान हथेली पर
ले कुर्बान हुए।
सदा मेरे भारत देश का पेट भरने वाले वो किसान हुए।।
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इस कविता के लेखक अनिल कुमार मारवाल के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए गणतंत्र दिवस पर देश पर और कविताएँ:
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पढ़िए अनिल कुमार मारवाल की और कविताएँ:
- हाँ मैं पागल हूँ: अनिल कुमार मारवाल की यह हिन्दी की कविता भारतीय समाज को जकड़े हुए कई मुद्दों पर प्रकाश डालती है।
- इक दीप: अनिल कुमार मारवाल की यह कविता दीपावली पर है और दीपावली के उपलक्ष्य में समाज के कल्याण की प्रार्थना भी है।
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