संक्षिप्त परिचय: कृषि बिल पर किसान आंदोलन कर रहे हैं। यह कविता उसी आंदोलन पर तथा उस आंदोलन में हिस्सा ले रहे किसानों पर है।
जो जागता है अंधियारी रातों में ये वही किसान है,
सर्दी गर्मी बारिश सब सह जाता ये वही किसान है।
देशद्रोही कहने की भूल कभी ना करो वजीरों इनको,
सुदूर सीमा पर जो खड़ा है वो भी एक किसान है।
चीर कर सीना धरती का, जल निकालता किसान है,
चढ़कर शाखों पर वृक्षों की, फल उतारता किसान है।
समस्याओं का कोई अंत ही नहीं है इनके जीवन में,
हिम्मत से अपनी हमेशा, हल निकालता किसान है।
ऐसे रोक रहे हो इनको तुम, रोड तक को खोद रहे,
और जाड़े वाली रातों मे वो, सड़कों तक पर सो रहे।
निकालो कुछ ऐसा रास्ता ,सबका समाधान हो सके,
उपद्रवी भयभीत रहें और किसानो में भी मौज रहे।
जानते हैं हम भी कि, कुछ उपद्रवी भी हैं इनके संग,
पकड़ो उनको डालो अंदर, सभी खड़े हैं तुम्हारे संग।
पुष्तें याद रखें इनकी, कुछ ऐसा इलाज करो इनका,
आंदोलन होते रहें यहां ,और ना कभी हो शांति भंग।
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इस कविता के लेखक सौरभ रत्नावत के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए कवि सौरभ रत्नावत की एक और कविता:
- हमारे घर का आँगन: इस कविता में कवि सौरभ रत्नावत अपने घर की ख़ूबसूरती को बयाँ कर रहे हैं। साथ ही उनके परिवार और प्रकृति के बीच कैसे तालमेल बैठा हुआ है यह भी समझा रहे हैं।
पढ़िए किसान पर एक और कविता:
- किसान: किसान एक देश के आधार से कम नहीं होते क्योंकि उनके द्वारा पैदा की गयी फसल ही उस देश की पूरी जनता खाती है। आज किसान परेशान हैं, उनकी इन हालातों पर है यह छोटी सी कविता जिसे लिखा है अंकिता असरानी ने।
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PC: Nandhu Kumar
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