संक्षिप्त परिचय: आर्य चंद्र अपनी पुरानी प्रेमिका इंदुमती को याद कर रहे हैं, पर क्या हुआ था उनके बीच? क्यों कर रहे हैं वो इंदुमती को याद? जानने के लिए पढ़िए अनिल पटेल जी की कहानी ‘अदृश्य प्रेम’।
आर्य चन्द्र लगभग दो घण्टे से आँखों से अश्क़ बहाते अपनी ख़ामोशी को अल्फाज़ो से कागज़ में कैद करने का प्रयास कर रहे थे । जब से दिल्ली होकर आए थे उनकी यहीं स्थिति थी । कभी अल्फाज़ो से खेलने लगते तो कभी दस वर्ष पुरानी तस्वीर को निर्निमेष देखने लगते । आँखों से बहते अश्क़ मानो तस्वीर से प्रश्न कर रहे थे , “अग़र जाना ही था तो आई क्यो थी।”
दस वर्ष पुरानी तस्वीर में आर्य चन्द्र के साथ खड़ी वो लड़की उनका पहला प्यार थी और शायद अंतिम भी । कॉलेज के केम्पस में खड़े आर्य चन्द्र किसी की खूबसूरती को निहार रहे थे । उस समय उनका हर क्षण नए रूप बनाकर अनोखे रंग में नृत्य करता प्रतीत हो रहा था । उनके समक्ष खडी उस लड़की की सुंदरता ऐसी प्रतीत हो रही थी मानो आर्य के जीवन मे प्रेम के चमकते सितारे बिखर गए हो । थोड़ी देर क्लास शुरू होने वाली थी । दोस्तो की भागदौड़ वाली आवाज़ आर्य के कानो के आई । अरे आर्य ! जल्दी आ , पुरुषोत्तम सर की क्लास शुरू हो गई है ।
प्रेम के परिंदे आर्य महाशय ख्यालो की दुनिया से हक़ीक़त की दुनिया मे आए और अपना रुख़ क्लास की ओर किया ।थोड़ी देर बाद क्लास के दरवाजे पर वहीं लड़की खड़ी थी शायद अंदर आने की इजाज़त ले रही थी । कक्षा में प्रवेश की अनुमति मिलते ही प्रथम पंक्ति में बैठ गई । फिर क्या था जिस व्यक्ति ने रिकॉर्ड बनाया था अंतिम पंक्ति में बैठने का प्रेम ने उस रिकॉर्ड को पल भर में तोड़ दिया । अब आर्य ने भी प्रथम पंक्ति में अपना स्थाई स्थान बना दिया ।
कॉलेज की छुट्टी हुई आर्य चन्द्र अपने घर गए खाना खाया और सो गए । ख्वाबो की दुनिया मे जाने ही वाले थे कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी । आर्य अपने नेत्रो में अर्द्ध निद्रा लेकर दरवाजे पर गए , जैसे ही दरवाजा खोला । एक बार फिर हृदय उपवन में प्रेम के पुष्प खिलने लगे जिसकी महक फिजा के कण-कण में फ़ैल गयी । दरवाजे पर वो दस्तक प्यार की दस्तज थी । उनके सामने वहीं कॉलेज वाली लड़की खड़ी थी ।
क्या मुझे थोड़ा दूध मिल सकता है ? लड़की ने सन्देह भाव से पूछा …..
ज ज ज जी अ अ अ अंदर आइए , वैसे तो आर्य साहब हकलाते नहीं थे किंतु प्रेम ने जिव्हा पर अंकुश लगा दिया था ।
आपका नाम क्या है ? आर्य चन्द्र ने जिज्ञासु होकर पूछा …….
इंदुमती , इस शहर में नई हूँ , आपके सामने वाला मकान किराए पर लिया है , पढ़ने आई हूँ यहाँ …..
इतना सुनते ही आर्य के लिए तो मानो ईद और दिवाली दोनों साथ आए हो । आर्य को लिखने की रुचि तो बचपन से ही थी मग़र अब लिखने में थोड़ा बदलाव आ गया था , जो आर्य साहब पहले सामाजिक विषयों पर व्यंग्य की क़लम चलाते थे अब वो अपनी क़लम से प्रेम में रंग भरने लगे , श्रृंगार रस तो मानो उन्हें विरासत में मिला हो । अब उनकी हर सुबह प्रेम किरण से प्रकाशित होने लगी और हर शाम प्रेम दिप से प्रज्वलित होने लगी । आर्य के जीवन रूपी वृक्ष पर प्रेम के फल फूल खिलने लगे थे । प्रेम में मतवाली वो लड़की आर्य चन्द्र के नवजीवन को रंग देने लगी थी ।
धीरे – धीरे नई सौगातों के साथ उनकी मुलाकाते होने लगी । कभी कॉलेज , कभी बाजार तो कभी घर की छत पर दोनो की भेंट हो ही जाती । रफ़्ता-रफ़्ता दोनों एक दुसरे के ख़्वाब बन गए । जब भी वो ख़्वाब हकीकत बनने की अभिलाषा प्रकट करता दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते थे ।
प्रेम की उस क्लास में न जाने कॉलेज कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला । लेकिन प्रेम ने कॉलेज के परिणाम को समेट कर रख दिया ।
कॉलेज का परिणाम लेकर आर्य घर आए । चेहरे पर मायूसी स्पष्ट नजर आ रही थी । परिणाम से हताश हुआ मन आर्य को यहीं समझा रहा था :
“फ़ैल ही जाएगी तुम्हारी भी महक ज़माने में ,
हर मुरझाया हुआ फूल बदबू दे यह जरूरी नहीं …!!”
मन को संतुष्ट करने आर्य इंदुमति के घर चले गए । किन्तु इंदुमति कॉलेज के परिणाम से अभी भी हताश थी । आर्य ने इंदुमती को समझाते हुए कहा “देखो उत्तीर्ण तो हो ही गए , अच्छे अंक न मिले इसमे इतना हताश होने की क्या जरूरत है । अंक तो ज्ञान के समक्ष सदैव अप्रसांगिक ही सिद्ध हुए हैं। क्या महज़ एक कागज़ का टुकड़ा हमारा भविष्य निर्धारित करेगा ।”
लेकिन इंदुमती तो अपनी ढपली , अपना राग लेकर बैठी थी । वह अपने बुरे परिणाम का कारण सिर्फ आर्य को मान रही थी । उसने आर्य को स्पष्ट कहा मुझे अकेला छोड़ दो । अगले दिन आर्य फिर इंदुमति के घर गया लेकिन दरवाजे पर ताला लगा हुआ था और शायद अब तक आर्य के प्रेम पर भी इंदुमति की ग़लतफ़हमी का बड़ा ताला लग गया था ।
एक पत्र दरवाजे पर निःशब्द पड़ा था जो किसी के हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था । उसमें लिखा था “सॉरी आर्य , मैं तुम्हे बिना बताए जा रही हूं । मेरे जीवन मे बड़े सपने है , मुझे एक मुकाम पाना है और मुझे तुम्हारा भविष्य भी तुम्हारे परिणाम की भांति दिख रहा है ।”
पत्र पढ़कर मानो आर्य के दिमाग मे हजारो प्रश्नों का चक्रवात उमड़ पड़ा । आर्य का दिल इंदुमति की तलाश करने की सोच रहा था किन्तु दिमाग़ ने केवल एक ही बात कहीं , तलाश उनकी की जाती है जो खो जाते है , छोड़कर जाने वालों की केवल प्रतीक्षा की जाती है ।
आर्य को अब प्रेम का अदृश्य रूप समझ मे आ गया था । उसे कॉलेज का प्रथम दिन याद आ रहा था जब उसने इंदुमती को पहली बार देखा था । दिल की हसरत केवल यहीं बयां कर रही थी , इश्क़ वो भी रूह से , कितना प्यारा एहसास था ना उस दिन , न कोई रिश्ता था न कोई बंधन था । सब कुछ दिल की मर्जी का था ।
धीरे-धीरे दिन गुजरने लगे । दोस्त आकर इंदुमति के बारे मे पूछते तो आर्य की ख़ामोशी सब कुछ कह जाती थी :
“उसे तो बस सितारों को पाना था ,
अंधेरे के साथ चलना तो महज़ बहाना था ….!!”
आर्य को प्रेम की ठोकर ने जिंदगी का यथार्थ स्पष्ट करवा दिया था । लेकिन समय रेत की भांति फिसल रहा था । तेज हवाओं की उड़ती हुई रेत , वसन्त ऋतु में झड़ते पत्ते , कलियों से टूटते पुष्प आर्य की जिंदगी को सिर्फ यहीं कह रहे थे :-
“जरा आहिस्ता चल ए जिंदगी
वक्त को एक राज की बात बताना बाकी है
खुद से खुद की मुलाकात करवाना बाकी है
बड़ा ग़रूर है आसमां को खुद पर
धरती से उसको उसकी औकात बताना बाकी है ।”
आर्य ने अब कलम को अपना हम दर्द बना दिया था । जिस दिन क़लम की स्याही खत्म होगी उस दिन शायद आर्य के जीवन की क़लम चलना भी बंद हो जाएगी । उनके लिखने का कौशल इतना उच्च हो गया था कि शहर के बड़े – बड़े साहित्यकारों में उनका नाम अग्रिम स्थान पर रहने लगा । अक़्सर कवि सम्मेलनों में अपनी कविताओं से हजारों दिलो में रंग भर देते थे । एक दिन आर्य के घर दिल्ली से साहित्य सेवा संस्थान का निमंत्रण आया जिसमे आर्य को साहित्य की अनुपम सेवा करने हेतु राष्ट्रपति से सम्मानित करने के बारे मे लिखा था । आर्य दिल्ली के लिए रवाना हुए जहाँ उन्हें सम्मानित करने का ऐतिहासिक क्षण सज था । हजारों लोग उपस्थित थे । हर नजर में उस साहित्यकार को प्रत्यक्ष देखने की इच्छा झलक रही थी , उन हजारों नज़रों में एक नज़र इंदुमती की भी थी जो उस साहित्यकार को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी । थोड़ी देर बाद आर्य चन्द्र मंच पर आए । उनको देखकर इंदुमती अचंभित रह गई । उसकी आँखें केवल एक ही प्रश्न कर रही थी , “तो यह है वो साहित्यकार?”
मंच संचालक ने आर्य चन्द्र को दो शब्द बोलने का निवेदन किया ……
आर्य चन्द्र ने प्रेम का यथार्थ स्पष्ट करते हुए कहा , प्रेम हर हर रंग में उत्सव है , प्रेम हर चोट में मुस्कुराहट है , प्रेम हर दर्द में वाह है ! प्रेम एक भाव है जो दिमाग से नहीं बल्कि दिल से किया जाता है क्योकि दिमाग समझने का प्रयास करता है और दिल महसूस करने का प्रयास करता है । प्रेम प्रदर्शन का नहीं है सिर्फ दर्शन का विषय है । प्रेम समर्पण और समानता को स्वीकार करता है जहाँ असमानता उत्पन्न होगी वहाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाएगा और विचारों में मतभेद आरम्भ हो जाएंगे । प्रेम का यथार्थ समझना है तो सुर , तुलसी और मीरा को पढ़िए मेरे प्रेम अनुभव ने तो मुझे इतना ही कहा है :
“बेवफाई के फूल है जरा संभल कर चलना इन मतलबी कलियों से ,
कभी हम भी गुजरे थे मोहब्बत की इन्ही ख़ामोश गलियों से ….!!”
इतना कहकर आर्य चन्द्र मंच से सम्मानित होकर प्रस्थान करने लगे । और जिस लड़की ने कभी धूप में खड़े रहने से मना कर दिया था आज वहीं लड़की धूप में भी छाया की तलाश कर रही थी । मगर इंदुमती आर्य चन्द्र का केवल ख़्वाब ही बनी क़भी हकीकत नहीं बन सकी और शायद आर्य चन्द्र अब इस हकीकत से खुश थे।
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इस हिंदी कहानी के लेखक ‘अनिल पटेल’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए अनिल पटेल की कविताऐं :
- साहित्य की बिंदी : कवि अनिल पटेल की यह सुंदर कविता, हिंदी भाषा पर है। यह कविता हिंदी के गुणों की व्याख्या करते हुए हिंदी पढ़ने की प्रेरणा देती है।
- हृदय वेदना: अनिल पटेल जी की यह हिंदी कविता विरह वेदना पर है। वे इस कविता में नायक और नायिका के बीच में विरह की वेदना की व्याख्या कर रहे हैं।
- गुरु की महिमा: हिंदी में यह कविता गुरु पर है और इसे लिखा है अनिल पटेल जी ने। इस कविता में कवि ने अपने गुरु श्री गोपाल कृष्ण शर्मा की उनके जीवन मे महत्ता बताते हुए गुरु के श्री चरणों मे निवास करने की प्रार्थना की है ।
- चिंता का चिंतन: इस प्रेरणादायक कविता में कवि वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं क्योंकि हमारा भविष्य हमारे वर्तमान पर ही निर्भर करता है ।
- बेटी : अनिल पटेल जी की यह कविता बेटी पर है। जो घर का महत्वपूर्ण अंश हो कर भी एक कुप्रथा से आज भी जूझती है।
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- बुद्धू का काँटा , चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी द्वारा लिखी गयी एक नटखट प्रेम कहानी है जो आपको ले जाएगी पुराने समय में।साथ ही आपका दिल भी गुदगुदा देगी।
- लिली – लिली एक लघु प्रेम कथा है उस समय पर आधारित जब अंतर्जातिय विवाह नहीं हुआ करते थे। खूब पढ़ लेने के बावजूद भी पद्मा के पिता की सोच जातिवाद तक ही सीमित रहती है । उनकी जातिवादी सोच और पद्मा की आधुनिक सोच उन दोनों से क्या करवाती है – जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी – लिली, जिसके लेखक हैं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ।
- साथ: लेखिका भावना सविता द्वारा लिखी गयी यह कहानी एक अनूठी प्रेम कहानी है जो आप को सच्चे प्रेम पर फिर से विश्वास दिल देगी।
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PC: Matteo Raw
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