संक्षिप्त परिचय: कवि मुकेश ‘मीत’ की यह कविता एक हिन्दी प्रेरक कविता है। इस कविता में कवि उम्मीद को कभी ना छोड़ने की प्रेरणा दे रहे हैं।
बिखरी उम्मीदों को बीन लीजिए,
हक न मिले तो उसे छीन लीजिए।
खुशियां तो आपके ही पास मीत हैं,
एक बार खुद पर यकीन कीजिए।।
खुद जिएं और जीना सिखाएं,
उम्मीदों की दुनिया बसाएं।।
साथ चले और छूट गए हैं,
पक्के इरादे टूट गए हैं।
कैसे जीवन भर की निभेगी,
बात – बात में रूठ गए हैं।।
रूठ जाएं ,कभी मान जाएं।
उम्मीदों की दुनिया बसाएं।
पीर है , पीर पलती रहेगी,
उम्र है , उम्र ढलती रहेगी।
मुश्किलें आएंगी जाएंगी,
ज़िन्दगी यूं ही चलती रहेगी।।
हम हर हाल में मुस्करायें।
उम्मीदों की दुनिया बसाएँ।।
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कवि मुकेश ‘मीत’ के बारे में और जानने के लिए पढ़ें यहाँ: कवि मुकेश ‘मीत’
पढ़िए कवि मुकेश ‘मीत’ की एक और कविता:
लॉकडाउन: यह कविता लॉकडाउन के समय में क्वारंटाइन होने की वजह से मनुष्य के मन में उत्पन्न हो रही भावनायों का वर्णन करती है।
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PC: Zac Durant
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