संक्षिप्त परिचय: योगेश नारायण दीक्षित जी की जीवन पर यह कविता, जीवन के कुछ अजीब तथ्यों को सरलता से प्रस्तुत करती है।
पूरा जीवन जी लेते हो
इतना कैसे कर लेते हो।
पहले कहते घर छोटा है
फिर साँसों में रह लेते हो।।
बिन ऋतु बारिश बनकर
बूंद बूंद से हम बनते हो।
बिना बहाना बिना ठिकाना
कैसे मुझमें रह लेते हो।।
इतना कैसे कर लेते हो…
जहां परिंदे भी न पहुँचें
इतना ऊंचा उड़ लेते हो।
फिर मेरा मन रखने को
धूल में आकर खो लेते हो।।
इतना कैसे कर लेते हो…
प्रेम की डगर बनीं शूलों की
तुम फूलों सा खिल लेते हो।
इंतजार में जो गुजरी सदियाँ
एक पल में सब जी लेते हो।।
इतना कैसे कर लेते हो…
एक साँस से ज्यादा न कुछ
फिर धड़कन को क्यों गिनते हो।
पता मुसाफिर को मंजिल है
फिर इतना क्यों चल लेते हो।
इतना कैसे कर लेते हो
पूरा जीवन जी लेते हो।
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इस कविता के लेखक योगेश नारायण दीक्षित जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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PC: Vlad Panov
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