संक्षिप्त परिचय: इस दुनिया में कुछ चीजें क्यों होती हैं ये किसी को समझ नहीं आता। ऐसे ही कुछ पहलूओं पर व्यंग्य करती है ये व्यंग्यात्मक कविता ‘बाजारों में तुम खूब चलोगे’ ।
टेढ़ी चाल वो दुलत्ती वाली
इसके बिन तुम कहाँ जमोगे।।
पहले सिक्का खोटा होने दो
बाजारों में तुम खूब चलोगे।।
झुकी हो गर्दन मरा ईमान
कुर्सी पर तुम खूब फबोगे।
इसकी टोपी उसके सर पर
अगले साहेब तुम्हीं बनोगे।
बुरा दौर है कहके देखो
सबके बुरे तुम्हीं दिखोगे।
खुश हो तो भी हँसना मत
सबकी नज़र में चढे मिलोगे।।
पहले सिक्का खोटा होने दो
बाजारों में तुम खूब चलोगे।
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कविता के लेखक योगेश नारायण दीक्षित जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए योगेश नारायण दीक्षित जी की और कविताएँ:
- देर नहीं लगती: इस जीवन में हम अलग अलग तरह के लोगों से मिलते हैं और बात करते हैं। कभी कहीं सच देखते और सुनते हैं और कहीं झूठ। ऐसे ही जीवन के सच और झूठ पर यह कविता।
- दिल कागज पर लिख लाया है: कभी अगर आपका दिल आपसे कुछ कहना चाहे, तो वो क्या कहेगा? कुछ ऐसे ही सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं कवि अपनी कविता ‘दिल कागज पर लिख लाया है’ के माध्यम से।
- इतना कैसे कर लेते हो : योगेश नारायण दीक्षित जी की जीवन पर यह कविता, जीवन के कुछ अजीब तथ्यों को सरलता से प्रस्तुत करती है।
- लॉकडाउन आदमी: योगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता लॉकडाउन में भारत के एक आम आदमी की लॉकडाउन में हो रही हालत को बयाँ करती है|
- योगेश #दोलाईना #यूंही : योगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता बदलती दुनिया में बदलते लोगों पर गौर करती है।
पढ़िए काका हाथरसी की कुछ ऐसी ही व्यंग्यात्मक और हास्य कविताएँ:
- 98 गुण + 2 अवगुण : काका हाथरसी की यह हास्य कविता पति के गुणों पर है।
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- अंगूठा छाप नेता : काका हाथरसी की यह व्यंग्यात्मक कविता एक कड़वे सत्य को बड़ी सरलता से उजागर करती है। आप भी पढ़िए और बताइए क्या इस कविता ने आप को सोचने पर मजबूर किया?
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PC: Eduardo Soares
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