मेरा ठुमका अप्पा पर पड़ा भारी | बचपन के डांस की कहानी

तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda"

मेरा ठुमका अप्पा पर पड़ा भारी | बचपन के डांस की कहानी | तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda"

संक्षिप्त परिचय: यह कहानी लेखिका तुलसी पिल्लई ‘वृंदा’ के बचपन की है, जब एक बार उन्होंने अपने अप्पा को अपना डांस दिखाना चाहा पर अप्पा ने मना कर दिया। जानिए क्या हुआ आगे।

मेरे अप्पा पुरानी फिल्में देखा करते थे। वह जो भी कार्य करते थे, वह करना मुझे भी अच्छा लगता था। उनके साथ-साथ मैं भी पुरानी फिल्म देखने में रूचि रखने लगी थी।जब पुरानी फिल्मों में अभिनेत्री हेमा मालिनी, मीना कुमारी, वैजयंती माला को डांस करते देखा करती थी – नृत्य वह करती थी और नृत्य मेरी रगो में भरता था।एक बार अप्पा पाकीजा फिल्म देख रहे थे। मैंने अभिनेत्री मीना कुमारी को घुंघरू बांधे डांस करते देखा। उनके पाँव से घुंघरू की आवाज मेरे कानों में जम गई और फिर क्या था? मैं भी पाँव थिरकाना सीखने लगी। न कोई गुरु ,बस मनमर्जी वाला डांस। इसको  डांस तो नहीं कह सकती। इसे तो लंगूरगिरी कहूँगी।

इस समय अप्पा भी डांस की शिक्षा में अनपढ़ ही थे । वह भला मुझे क्या डांस सीखाते? हाँ, जबरन उन्हें अपना श्रोता बना कर बिठा जरूर लिया करती… मेरा डांस देखने के लिए… कभी-कभी वह मेरे डांस पर तालियां बजा लेते… मैं जैसे भी नाचूं…  उनके मुख से वाह… वाह… निकलने के सिवा कुछ भी ना निकलता था। कमियाँ निकालना तो  दूर की बात रही। उनका वाह…  कहना मतलब बहुत ही उम्दा डांस है मेरा। मैं डांस करने में भी निपुण हूँ और डांसर  भी बन सकती हूँ।इसका कहां पता था? उनका वाह…केवल मात्र मेरी खुशी के लिए ही था।

मेरी मां की यदि बात करूं तो उनको यह नाचना गाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। लड़कियों का डांस करना वो अच्छा नहीं समझती थी। इसलिए सदैव मेरे नाचने पर नुक्ताचीनी करती रहती थी। मेरे माँ-पापा ने हम बहनों को हर काम करने की पूर्ण आजादी दे रखी थी। लेकिन डांस की करने की नहीं… हर समय डांस करने पर वह मुझे टोकती रहती थी। लेकिन मैं तो अपने जीवन को अपने ढंग से जीने की आदी हूँ। इसलिए मैं केवल अपने मेरे अप्पा के सामने और पैदमा के घर पर जाकर डांस सीखने लगती थी। मेरी पैदमा ने मेरे डांस करने पर कभी अपनी असहमति नहीं जताई।कई बार अप्पा की अनुपस्थिति में तो वो भी मेरी श्रोता बनी हैं। परंतु जब मैं चौबीसों घंटे इस कार्य के लिए उनके घर का रास्ता पकड़ लेती थी, तब जरूर परेशान हो जाया करती थीं और मुझे भी बहुत आनन्द आता उनको परेशान करने में, वह अक्सर कहा करती थी कि तुम सभी बच्चों ने मेरा जीना हराम करके रख दिया है। मन करता है कि मैं अपना घर जंगल में बसा लूँ। हा हा हा…

(ख़ैर छोड़िए, इन सब बातों में अभी उलझने का समय नहीं आया है।)

मुझे याद है एक रोज मेरा डांस करने का मन बना। क्योंकि मेरे स्कूल में पन्द्रह अगस्त की तैयारी चल रही थी और मेरी क्लास की  लड़कियों ने भी डांस में भाग लिया था।मैं अपनी स्कूल के समय में बहुत संकोची और शर्मिली रही थी।इस कारण मैं किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पाती थी। अप्पा से मेरा जितना घनिष्ठ संबंध रहा, वह मेरा किसी से भी नहीं रहा है। क्योंकि मैं तो अपनी क्लास की लड़कियों से भी सही से बात नहीं कर पाती थी।

क्लास की सबसे सीधी-साधी, भोली-भाली बच्चियों में मेरा नाम शामिल होता था। मेरे क्लास में मेरी” चू ” करने की आवाज भी निकलती हो, यह किसी को भी पता नहीं था। यहाँ तक कि मैं इन्टरवेल में सभी कक्षा की छात्राओं को मस्ती करते देखा करती थी… अपने बैंच पर ही बैठकर… हँसी आती है… कि मैं कितनी मासूम थी… कभी-कभी मुझे अपने इस स्वभाव के लिए बुरा भी महसूस होता था कि मैं इतनी अनुशासित क्यों हूँ? जितनी मैं अपने अप्पा के साथ चंचल रहती हूँ, उतनी ही चंचल मैं इन सभी लोगों के साथ क्यों नहीं रह पाती?

(खैर, जहाँ तक मेरा अनुभव है, दुनिया में बहुत सारे लोग हैं, सारे लोगों के साथ अपना मधुर संबंध बिठा पाना असम्भव है। हमारे प्रारब्ध कर्म जिनसे जुड़े होते हैं, उनसे ही प्रेम, स्नेह और मधुर संबंध स्थापित होते हैं। हर किसी से यह सब नहीं हो सकता है।)

मैं पैदमा के घर गई। अप्पा टेलीविजन पर क्रिकेट देख रहे थे। मैंने अप्पा से कहा कि वह मेरा डांस देखें और  टीवी बंद कर दीजिए। उन्होंने “बाद में” कह कर छोड़ दिया। मैं तो ज़िद्दी थी ही, मैं टीवी के आगे डांस करने लगी। अप्पा मुझसे याचना करने लगे कि  बेटा ऐसा क्यों कर रही है ? टीवी देखने दे ना बाबा। बाद में पक्का तेरा डांस देख लूंगा।

मैंने कहा:-  “अप्पा, तुम बहुत झूठ बोलते हो। फिर कहोगे, मुझे होटल जाने में देरी हो रही है और भाग निकलोगे। चुपचाप मेरा डांस देखो पहले।”

अप्पा बोले:-“नहीं-नहीं, सच पहले तेरा डांस देखकर ही मैं होटल जाऊँगा।”

 मैंने कहा:-  “नहीं। और एक चुनौती उनके समक्ष रख दी।अगर हिम्मत है तो, मुझे टीवी के सामने से हटाकर दिखाओ। हटाने में कामयाब हो गए तो टीवी देख सकते हो। वरना मेरा डांस देखना होगा।”

मेरा शरीर बहुत दुर्बल था। डर था‌, अप्पा से हार जाऊंगी।वह तो मुझे यूं ही हवा में उछाल देंगे। अप्पा आए और हँसते हुए मेरे ककड़ी जैसे नाजूक हाथ खींचने लगे। मैं अपना पाँव जमीन पर जमाने की कोशिश करने लगी‌। लेकिन बार-बार मेरे पाँव उखड़ रहे थे। मैं लौ की भाँति डगमगा रही थी। कभी इधर हो रही थी ,तो कभी उधर हो रही थी। कभी दीवार को मजबूती से पकड़ लेती। अब मुझे लगने लगा में हारने वाली हूं‌‌ तो मैंने मीना दीदी के पास बैठे मेरे भाई बहन अर्थात भूमा और दलों को भी बुलवा लिया। उन्होंने मुझे अप्पा के खिलाफ थाम लिया। हम सभी हँस-हँसकर लोटपोट हो रहे थे।” जोर लगाकर हहीसा का स्वर गूँजने लगा। हम बच्चों को इस खेल में आनंद आने लगा।हम सभी खिलखिला रहे थे।

 अचानक अप्पा ने  हम सभी को इस  खेल में पिछाड़ दिया। यह हार मेरे लिए असहनीय रही। लेकिन मन में कोई हीन भावना नहीं थी । अप्पा अब तक वहीं खड़े थे, अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। मैं कितना बलवान हूँ? मुझे गुस्सा आने लगा। मैं मजाक-मजाक में अप्पा को एक ठुमका मार बैठी। मेरे एक ठुमके से अप्पा धम कर जमीन पर गिर पड़े ।जैसे ही वो जमीन पर गिरे, हम हँस-हँसकर लोट-पोट हो गए। यह मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य का विषय था क्योंकि मैंने कोई अपनी शारीरिक शक्ति नहीं लगाई थी। पता नहीं, यह  कैसे संभव हुआ कि  मेरे एक  ठुमके से अप्पा जमीन पर धम्म हो गए।

इस समय भी वह झूठ मूठ के रोने का अभिनय करने लगे और कहने लगे कि हाय! तुने मेरी कमर तोड़ दी। अप्पा के इतना कहते ही हम सब भाई बहन उन पर चढ़कर बैठ गए और खिलखिला कर हंसने लगे।अप्पा हम सभी से कहते रहे कि  सच में मेरी कमर पर लचक आ गई  है। उठ जाओ। सच में दर्द हो रहा है। दर्द और अप्पा को ?? कदापि नहीं…हा हा हा। हमें तो मजाक ही लग रहा था‌।

 बाद में जब यह खेल खत्म किया गया। अप्पा स्वयं नहीं उठ पा रहे थे। हम सभी ने उन्हें उठाया। अभी भी हमारी हँसी बरकरार थी और अप्पा की हँसी कहीं लुप्त हो गई। अप्पा की कमर पर मीना दीदी बाम लगा रही थीं, हम हँस-हँसकर पैदमा को यह किस्सा सुना रहे थे कि मेरे एक ठुमके से अप्पा ज़मीन पर धम से गिर पड़े।

 मैंने पैदमा से कहा :-“आज मैंने तुम्हारे अप्पा की कमर तोड़ दी।”

वह बोली:-” इस आदमी को पूरा भी तोड़ दे, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”

मैंने कहा:-“पैदमा, पक्का , अप्पा को पूरा तोड़ दूं?

उन्होंने कहा:-“हाँ, मैं  तो खुद परेशान हूँ इस आदमी से ” और अप्पा को कराहते हुए देखकर भिन्नी-भिन्नी हँसी हँसने लगी।

यह बात यहां समाप्त नहीं होती थी। मैं तो इस प्रसंग को याद करके कई दिनों तक हँसती रही थी और जब कभी यह सुनहरी यादें ताजा हो जाया करती है तो मन ही मन मुस्कुराती रहती हूँ…मेरे अप्पा के पागलपन पर

~तुलसी पिल्लई “वृंदा”
(जोधपुर राजस्थान)


कैसी लगी आपको बचपन के डांस की यह कहानी। कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।


लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा”के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें


पढ़िए बचपन की याद करती तुलसी पिल्लई ‘वृंदा’ की और कहानियाँ:

  • दाढ़ी बनाने की कला: लेखिका अप्पा को दाढ़ी बनाते हुए देखती हैं और फिर उनका भी मन करता है कि वो उनकी दाढ़ी बनाएँ। पर क्या वो उनकी दाढ़ी बना पाती हैं? जानने के लिए पढ़िए लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा” की बचपन को याद करती यह कहानी “दाढ़ी बनाने की कला”।
  • पैसों का पेड़ (भाग-1):  यह कहानी पाँच भागों में लिखी गयी है और यह इस कहानी का पहला भाग है। इस कहानी में लेखिका अपने बचपन के दिनों का एक दिलचस्प क़िस्सा साझा कर रही हैं।
  • पैसों का पेड़ (भाग-२): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का दूसरा भाग है।
  • पैसों का पेड़ (भाग-3): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का तीसरा भाग है।
  • पैसों का पेड़ (भाग-४): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का चौथा भाग है।
  • पैसों का पेड़ (भाग-5): यह है कहानी ‘पैसों का पेड़’ का पाँचवा और आख़िरी भाग।

पढ़िए बचपन की याद करती कहानियाँ:

  1. निक्की, रोज़ी और रानी, लेखक – महादेवी वर्मा: इस कहानी में है एक बच्ची और उसके तीन पालतू जानवर। बच्ची के निःस्वार्थ प्रेम और प्रीति की बचपन को याद करती हुई यह कहानी ।
  2. दो सखियाँ : दो सखियाँ हैं – मुन्नी और रामी – जिनमें से एक अमीर है एक गरीब। पर साथ में पढ़ने लिखने और बड़े होने के बाद उनका जीवन कैसे एक दूसरे से बंधता है उसकी कहानी है ‘दो सखियाँ’ जिसे लिखा है ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ ने।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/


 842 total views

Share on:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *