धूप और छांव | माता-पिता पर कविता

सुन्दरी अहिरवार की कविता | A Hindi poem by Sundari Ahirwar

धूप और छांव | माता-पिता पर कविता | सुन्दरी अहिरवार की कविता | A Hindi poem by Sundari Ahirwar

संक्षिप्त परिचय : हमारे जीवन में माता-पिता का महत्व कभी कम नहीं होता। यही बात
समझाती है ‘सुंदरी अहिरवार’ की यह कविता ‘धूँप और छांव’।

पिता मेहनत की धूप है,
मां ममता की छांव है,
मेरे जीवन की धूप- छांव यही है।
पिता क्रोध की ज्वाला है,
मां शांति की देवी है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है
पिता मेरे साकार है,
मां मेरी आकार है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता उम्मीदों का सागर है,
मां हौसलों का समुंदर है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरा अहम है,
मां मेरी रहम है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरा समय है,
मां मेरी प्रतिपल है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरा साहित्य है,
मां मेरे जीवन का आधार है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरे आसमान है,
मां मेरी धरती है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरी आत्मा है ,
मां मेरी परमात्मा है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता मेरा आचरण है,
मां मेरी सभ्यता है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।
पिता जीवन का सार है,
मां जीवन का संसार है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है
पिता मेरा अर्पण है,
मां मेरी समर्पण है,
मेरे जीवन की धूप छांव यही है।


कैसी लगी आपको माता-पिता पर लिखी गयी यह कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवयित्री को भी प्रोत्साहित करें।
कविता की लेखिका सुंदरी अहिरवार के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ 


पढ़िए सुंदरी अहिरवार की अन्य कविताएँ:

  • नारी: सुंदरी अहिरवार की यह कविता नारी पर है। यह कविता नारी के विशेष गुणों पर प्रकाश डालती है।
  • अंधेरे से उजाले की ओर: कवयित्री सुंदरी अहिरवार की ये एक उत्साह बढ़ाने वाली कविता है। इस कविता के माध्यम से वे पाठक को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं।
  • दीपावली: सुंदरी अहिरवार की यह कविता दीपावली के त्यौहार पर दीपावली का महत्व समझाते हुए, त्यौहार को मनाने की प्रेरणा दे रही है।

पढ़िए रिश्ते और परिवार पर ऐसी ही और कविताएँ:

  • माँ का रोपित वसंत: कोरोना काल में जहाँ कई लोग फिर से किसी ना किसी रूप में प्रकृति से जुड़े हैं, वहीं ये कविता एक ऐसी लड़की के मन की आत्म संतुष्टि व्यक्त करती है जिसने वर्षों पूर्व अपनी माता द्वारा रोपित एक वृक्ष में ही अपने परिवार का एक हिस्सा देखना शुरु कर दिया था और इसलिए अब उसे अकेला महसूस नहीं होता । पढ़िए बचपन याद करती यह सुंदर कविता।
  • हमारे घर का आँगन: इस कविता में कवि सौरभ रत्नावत अपने घर की ख़ूबसूरती को बयाँ कर रहे हैं। साथ ही उनके परिवार और प्रकृति के बीच कैसे तालमेल बैठा हुआ है यह भी समझा रहे हैं।
  • ये कैसे हैं रिश्ते:  ‘ये कैसे हैं रिश्ते’, यह एक रिश्तों पर कविता है जिसे लिखा है कवि ‘जुबैर खाँन’ ने । अपनी इस कविता में कवि रिश्तों की विचित्रता का वर्णन कर रहे हैं।

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PC: Aziz Acharki

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