संक्षिप्त परिचय: कवि अनिल पटेल की यह सुंदर कविता, हिंदी भाषा पर है। यह कविता हिंदी के गुणों की व्याख्या करते हुए हिंदी पढ़ने की प्रेरणा देती है।
एक बार हिंदी पढ़ कर देख ,
स्वयं को हिंदी में ढक कर देख ,
वो गोपियों की विरह वेदना ,
प्रेमचंद की शोषित वर्ग संवेदना ,
स्वयं को हिंदी में खोकर देख ,
मीरा आरति में रोकर देख ,
स्वयं को प्रेम माठि में ढककर देख ,
एक बार रामेश्वर त्रिपाठी पढ़ कर देख ,
नव रस की रसखान है हिंदी ,
भारत की पहचान है हिंदी ,
वो मैथिली की त्रिखण्ड पदावली ,
वो तुलसी की राम कवितावली ,
नाभादास की हर रचना में धर्म है ,
हिंदी के हर भाव मे वर्म है ,
हिंदी उत्थान ही हमारा कर्म है ,
साहित्य के हर शब्द में मर्म है ,
एक बार हिंदी पढ़ कर देख ,
स्वयं को हिंदी में ढक कर देख ,
करुणामयी नदी में बहती है हिंदी ,
कबीर साहित्य से विस्तृत है हिंदी ,
मेरे स्वप्न्न में सहेजी हुई है हिंदी ,
सुंदर स्मृतियों में सजी हुई है हिंदी ,
मेरी हर कविता में महती है हिंदी ,
मेरे हिय छूकर निकलती है हिंदी ,
मेरे जीवन की हर उमंग में लिपटी ,
मेरे नवजीवन को निखरती है हिंदी ,
जब भी इसे पढ़ता हूं ,
मुझे अच्छा लगता है ,
इसका हर शब्द मुझे सच्चा लगता है ,
एक बार हिंदी पढ़ कर देख ,
स्वयं को इसमें ढक कर देख ।
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इस हिंदी कविता के लेखक ‘अनिल पटेल’ के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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PC: Anurag Garg
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