अद्भुत औषधि | काका हाथरसी की कविता

kaka hathrasi ki kavita | adbhut aushadi

अद्भुत औषधि | काका हाथरसी की कविता | kaka hathrasi ki kavita | adbhut aushadi

संक्षिप्त परिचय: कवि लक्कड़ जी बीमार पड़ गए, डॉक्टर भी आए फिर पढ़िए क्या हुआ आगे। पढ़िए काका हाथरसी की यह हास्य कविता और हमें भी बताइए आपको कैसी लगी ?

कवि लक्कड़ जी हो गए , अकस्मात बीमार ।
बिगड़ गई हालत मचा, घर में हाहाकार ।।
घर मे हाहाकार , डॉक्टर ने बतलाया ।
दो घंटे में छूट जाएगी , इनकी काया ।।
पत्नी रोई – ऐन्सी कोई सुई लगा दो ।
मेरा बेटा आए तब तक इन्हे बचा दो ।।

मना कर गये  डॉक्टर , हालत हुई विचित्र ।
फक्कड़ बाबा आ गये , लक्कड़ जी के मित्र ।।
लक्कड़ जी के मित्र , करो मत कोई  चिंता ।
दो घंटे क्या , दस घंटे तक रख लें जिंदा ।।
सबको बाहर किया , हो गया कमरा खाली ।
बाबा जी ने अंदर से चटखनी लगा ली ।।

फक्कड़ जी कहने लगे – “अहो काव्य के ढेर ।
हमे छोड़ तुम जा रहे , यह कैसा अंधेर ?
यह कैसा अंधेर , तरस मित्रों पर खाओ ।
श्रीमुख से कविता दो चार सुनाते जाओ ।।”
यह सुनकर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली ।
तकिया के नीचे से काव्य किताब निकाली ।।

कविता पढ़ने लग गए , भाग गए यमदूत ।
सुबह पाँच की ट्रेन से , आये कवि के पूत ।।
आये कवि के पूत , न थी जीवन की आशा ।
पहुंचे कमरे मे तो देखा अजब तमाशा ।।
कविता पाठ कर रहे थे , कविवर लक्कड़ जी ।
होकर ‘बोर’ मर गये थे , बाबा फक्कड़ जी ।।


काका हाथरसी के बारे में और जानने के लिए पढ़िए यहाँ: कवि काका हाथरसी

पढ़िए काका हाथरसी की हास्य कविताएँ यहाँ:

  • 98 गुण + 2 अवगुण : काका हाथरसी की यह हास्य कविता पति के गुणों पर है।
  • अंगूठा छाप नेता : काका हाथरसी की यह कविता एक कड़वे सत्य को बड़ी सरलता से उजागर करती है। आप भी पढ़िए और बताइए क्या इस कविता ने आप को सोचने पर मजबूर किया?


PC: geralt-9301

 1,932 total views

Share on: