संक्षिप्त परिचय: कवि लक्कड़ जी बीमार पड़ गए, डॉक्टर भी आए फिर पढ़िए क्या हुआ आगे। पढ़िए काका हाथरसी की यह हास्य कविता और हमें भी बताइए आपको कैसी लगी ?
कवि लक्कड़ जी हो गए , अकस्मात बीमार ।
बिगड़ गई हालत मचा, घर में हाहाकार ।।
घर मे हाहाकार , डॉक्टर ने बतलाया ।
दो घंटे में छूट जाएगी , इनकी काया ।।
पत्नी रोई – ऐन्सी कोई सुई लगा दो ।
मेरा बेटा आए तब तक इन्हे बचा दो ।।
मना कर गये डॉक्टर , हालत हुई विचित्र ।
फक्कड़ बाबा आ गये , लक्कड़ जी के मित्र ।।
लक्कड़ जी के मित्र , करो मत कोई चिंता ।
दो घंटे क्या , दस घंटे तक रख लें जिंदा ।।
सबको बाहर किया , हो गया कमरा खाली ।
बाबा जी ने अंदर से चटखनी लगा ली ।।
फक्कड़ जी कहने लगे – “अहो काव्य के ढेर ।
हमे छोड़ तुम जा रहे , यह कैसा अंधेर ?
यह कैसा अंधेर , तरस मित्रों पर खाओ ।
श्रीमुख से कविता दो चार सुनाते जाओ ।।”
यह सुनकर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली ।
तकिया के नीचे से काव्य किताब निकाली ।।
कविता पढ़ने लग गए , भाग गए यमदूत ।
सुबह पाँच की ट्रेन से , आये कवि के पूत ।।
आये कवि के पूत , न थी जीवन की आशा ।
पहुंचे कमरे मे तो देखा अजब तमाशा ।।
कविता पाठ कर रहे थे , कविवर लक्कड़ जी ।
होकर ‘बोर’ मर गये थे , बाबा फक्कड़ जी ।।
काका हाथरसी के बारे में और जानने के लिए पढ़िए यहाँ: कवि काका हाथरसी
पढ़िए काका हाथरसी की हास्य कविताएँ यहाँ:
- 98 गुण + 2 अवगुण : काका हाथरसी की यह हास्य कविता पति के गुणों पर है।
- अंगूठा छाप नेता : काका हाथरसी की यह कविता एक कड़वे सत्य को बड़ी सरलता से उजागर करती है। आप भी पढ़िए और बताइए क्या इस कविता ने आप को सोचने पर मजबूर किया?
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