संक्षिप्त परिचय: हिंदी दिवस पर यह कविता – कवि प्रभात शर्मा जी ने लिखी है। इस कविता में प्रभात शर्मा जी हिंदी भाषा की विशेषताओं बता रहे हैं।
हिन्द से हिन्दी बनी, साक्षी है संस्कृति की,
देव-लिपि है , जो लिखें कहती वही है ।
गागरों के मन से बहती ,
सागरों को पार करती ,
चीरती बहुत विघ्न-बाधा ,
तोड़ती बन्धन निराले,
मन में फैलाती उजाले,
दम्भियों से जूझकर भी
विश्व में छायी हुई है ।
वर्तनी के भेद से परिशुद्ध है ,
भावनाओं से भरी और प्रबुद्ध है,
गीत गाती, गुनगुनाती, देश के
अंचलों, बहुरंगीयों के शौर्य के,
व्योम-भू के बीच के सौन्दर्य को,
सहज कह जाती छिपे अति गूढ़ को ।
ग्राह्य है सबको सहज ही,
भावना के भाव लेकर,
हृदय अन्तर में उतरती ,
और प्रस्फुट कर ही देती सरलता से ,
अनकही सी बात जो मन कह न पाए,
घुमड़ कर अस्पष्ट सा कहीं अटक जाए,
ढ़ूंढ़ता जब अनकहे से शब्द प्रतिपल ,
भाव की बन सहज भाषा , भाषिनी सी
सार बन जब तरलता से लुढ़क जाए
मन मुकुर को स्वच्छ कर,वह शर्करा सी
कर्ण-प्रिय बन हृदय- मरु में ,
तरलता मृदु पेय की ज्यों शान्ति लाए ।
यह सुरभि मृदुला सहज् पय ,वारि की ,
विश्व की भाषा विविध को कर पराजित
शीर्ष भाषा विश्व की बन शौर्य पाए ,
प्रभु ! कृपा कर , गीत फिर से गुनगुनाए ।
कैसी लगी आपको हिंदी दिवस पर यह विशेष कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
कवि प्रभात शर्मा जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए उनकी अन्य कविताएँ :
- स्वर्ण-प्रकाश: प्रकृति पर उत्कृष्ट कविता ।
- सजल-नयन: यह सुंदर कविता उस क्षण का विवरण करती है जब हम अपने अंत:करण के प्रेम का सत्य समझ लेते हैं।
- एक भावांजलि दिवंगत को: दिवंगत को भावांजलि देती हुई एक कविता।
PC: harishs-3407954
1,938 total views